ममत्व का स्नेहिल स्वप्न – डॉ. रीना रवि मालपानी

लघुकथा

दुर्गा गर्भावस्था की यात्रा से गुजर रही थी। दुर्गा की माँ ने दुर्गा को समझाया था कि गर्भावस्था में आचारों-विचारों का प्रभाव बहुत होता है। बहुत से लोगों ने उसे नन्हें बच्चों की सुंदर-सुंदर तस्वीर देखने की सलाह दी। तब उसकी माँ ने उसे श्रीकृष्ण की लीलाओं को देखने और पढ़ने को प्रेरित किया। जबभी दुर्गा श्रीकृष्ण की मनोहारी बालछबि देखती थी तब भीतर-भीतर ही आनंद और हर्ष-उल्लास के भाव जागृत होने लगते। वह मन-ही-मन सोचती की धन्य है माँ यशोदा जिन्होने ममत्व के स्नेहिल स्वप्न श्रीकृष्ण की लीलाओं को देखा। उन्होने तो ममता की उत्कृष्ट पराकाष्ठा सृष्टि के पालनहार और तारणहार की लीलाओं को साक्षात देखा।

अपनी बाल लीलाओं में श्रीकृष्ण ने नटखट बालक का स्वरूप बनाया और साथ ही साथ बाल्यकाल से ही उद्देश्यपूर्ति में लग गए। कितना सहज और सरल माखनचोर, मुरलीमनोहर स्वभाव था। श्यामवरण बने जिससे दुनिया रंगभेद को महत्व न दे। साधारण से ग्वाले का रूप धारण किया और सरलता का पाठ सिखाया। सभी के लिए श्रीकृष्ण का अपना-अपना स्वभाव था। किसी के लिए मनोहारी लल्ला, किसी के लिए नटखट माखनचोर, किसी के लिए विशाल हृदय से परिपूरित मित्र, किसी के लिए संत और दीनहीन रक्षक तारणहार, किसी के लिए उद्धारक भानजे, किसी के लिए अद्वितीय प्रेमी, किसी के लिए परम स्नेही पति, किसी के लिए भगवद्गीता के ज्ञानदाता, किसी स्त्री की लज्जा के रक्षक, किसी अनाचारी-दुराचारी के भक्षक हर रूप में श्रीकृष्ण एक अलग अवतारी स्वरूप है। एक अनूठा बालक जो केवल माँ यशोदा का ही नहीं पूरे गोकुल वासियों का मन मोह लेता था। ममता के परम सुख को श्रीकृष्ण के स्मरण के साथ जीना एक अनूठा सुख है। कैसे एक नन्हें से बालक ने अपने दीनहीन सखा मित्रों की क्षुधा पूर्ति के बारे में भी सोचा। स्वयं के लिए सर्वत्र सुलभ होने पर भी सदैव सखाओं के लिए तत्पर दिखाए दिए। यह गर्भावस्था का समय दुर्गा के लिए मातृत्व के जन्म, अध्यात्म से जुड़ाव और जीवन के मायने को समझने का भी समय था।

इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है कि यदि नौ महीने बालक के आचार-विचार ईश आराधना से प्रभावित हो सकते है तो क्यों न उसे आगे की यात्रा भी श्रीकृष्ण के ज्ञानदर्शन और उनके जीवन से सीखने की ओर प्रेरित करें। श्रीकृष्ण का हर स्वरूप शिरोधार्य है। अपनी मानवलीला में तो उन्होने मानव जीवन को जीने के प्रत्येक पक्ष पर दृष्टि डाली है और उससे सीखने के संदेश दिए है। श्रीकृष्ण के स्मरण से तो दुर्गा भी मनुष्ययोनि की सार्थकता को समझने लगी थी। अतः गर्भावस्था के बाद भी बच्चों को जादुई कार्टून दिखाने की बजाए सृष्टि के पालनहार से जोड़े और उसे ईश आशीर्वाद के साथ जीवनयात्रा में उत्तरोत्तर उन्नति में सहयोग करें।

लेख – डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)