भगवान 56 भोग और मेवा-मिष्ठान्न से नहीं,हमारे कर्मों में श्रेष्ठता से प्रसन्न होंगे – पं. अऩिल शर्मा

इंदौर, । प्रेम जीवन का अलंकार है। भगवान केवल 56 भोग या मेवा-मिष्ठान अथवा चकाचौंध कर देने वाली साज-सज्जा से प्रसन्न नहीं होते, उन्हें प्रसन्न करने के लिए हमारे कर्मों में श्रेष्ठता का भाव जरूरी है। जब कर्मों में परमार्थ और व्यवहार में सदभाव आ जाएगा तो यह भी भक्ति का ही स्वरूप होगा। कोई भी परिवार स्नेह और मर्यादा की नींव पर ही खड़ा रह सकता है। धन के बल पर आलीशान बंगले तो बना सकते हैं, लेकिन इसमें रहने वाले परिजनों को जोड़ने के लिए स्नेह, सदभाव और विश्वास का फेविकोल भी जरूरी है।

       लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याणधाम, खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मालवा के प्रख्यात भागवताचार्य पं. अऩिल शर्मा ने आज मालवी और खड़ी बोली में भागवत कथा सुनाते हुए उक्त बातें कही। खाड़ी के मंदिर पर चल रही इस कथा में मालवी और निमाड़ी मिश्रित बोली में भगवान के चरित्र का गुणानुवाद सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रोता आ रहे हैं। व्यासपीठ का पूजन हंसदास मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में भागवताचार्य पं. पवन तिवारी, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता, पं. पवनदास शर्मा, वर्षा शर्मा आदि ने किया।

       पं. शर्मा ने कहा कि भगवान गोकुल और वृंदावन में रहते थे क्योंकि वहां बाल-ग्वालों से लेकर ब्रज की भूमि में रहने वाले सभी लोगों का एक परिवार बना हुआ था। एक साथ रहकर ही हम एक दूसरे के दुख-दर्द को समझ सकते हैं। हमारा परिवार गोकुल की तरह होना चाहिए, जिस दिन हमारा घर आंगन गोकुल बन जाएगा, उस दिन भगवान स्वयं चले आएंगे। भक्ति में यदि प्रेम का भी समावेश हो जाए तो वह भक्ति सहज ही दूसरों को भी अपना बना लेती है।