सभी धर्मों की श्रेष्ठ बातों को प्रतिष्ठित करना ही उच्च शिक्षा का उददेश्य हो

इंदौर, । वर्तमान दौर में नई पीढ़ी को संस्कारित करना आज के समाज की पहली प्राथमिकता होना चाहिए। संस्कारों से ही संस्कृति का सृजन होता है। सभी धर्में की श्रेष्ठ बातों को प्रतिष्ठित करना ही उच्च शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर वि.वि. अहिंसा, सौहार्द्र और जैन विरासत शोध पीठ का उद्देश्य नैतिक मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति के मानवीय पक्षों को स्थापित करना है।

       डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान वि.वि. की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने उक्त विचार दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ गोम्मटगिरि पर श्रमण संस्कृति विद्यावर्द्धन ट्रस्ट एवं अम्बेडकर वि.वि. के संयुक्त तत्वावधान में जैन संस्कृति एवं संस्कारों पर केन्द्रित तीन दिवसीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए। मीडिया प्रभारी महावीर जैन एवं मनीष अजमेरा ने बताया कि संगोष्ठी में जैन पुराणों में संस्कार, जैन जीवन शैली की उपयोगिता, सोलह संस्कार, पंच कल्याणक का धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक महत्व, धार्मिक अनुष्ठान, प्रतिष्ठा विधि-विधान में विसंगतियां आदि मुद्दों पर कुल 23 शोध पत्रों का वाचन देश के विभिन्न राज्यों से आए विद्वानों ने किया। समापन सत्र में बनारस आईआईटी के पूर्व निर्देशक प्रो. राजीव सांगल ने प्राकृत भाषा के ग्रंथों का सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने पर जोर दिया। पीठ के आचार्य डॉ. अनुपम जैन ने कहा कि विश्व की सभी प्रमुख समस्याओं का समाधान जैन जीवन पद्धति में मौजूद है। मुख्य अतिथि अशोक बड़जात्या ने कहा कि जैन संस्कृति का संरक्षण मानवता के लिए अत्यंत उपयोगी है। इस अवसर पर हेमचंद्र झांझरी, पं. रतनलाल जैन शास्त्री, पं. रमेशचंद्र बांझल ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. अनुपम जैन द्वारा लिखित ‘मांलवांचल की पांडुलिपि संपदा’ पुस्तक का विमोचन प्रो. राजीव सांगल और अशोक बड़जात्या ने किया। ट्रस्ट के अध्यक्ष भानूकुमार जैन, सचिव कैलाश वेद एवं रवि गंगवाल ने अम्बेडकर वि.वि. एवं महाराष्ट्र, उ.प्र., दिल्ली, म.प्र. एवं अन्य राज्यों से आए विद्वानों के प्रति आभार व्यक्त किया। मीडिया प्रभारी महावीर जैन एवं मनीष अजमेरा के अनुसार संगोष्ठी का आयोजन कई मायनों में सार्थक और प्रभावी साबित हुआ।

       समापन दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में जैन समाज के समाजसेवी आर.के. जैन रानेका, श्रीमती सुमन जैन, कमल सेठी, राजेन्द्र गंगवाल तथा अम्बेडकर वि.वि. के डॉ. नवरत्न बोथरा, डॉ. बिंदिया तांतेड़, श्रीमती मनीषा एवं मनीष त्रिवेदी सहित अन्य शोधकर्ता भी उपस्थित थे। अंतिम सत्र में भानूकुमार जैन की अध्यक्षता में डॉ. संगीता मेहता एवं श्रीमती उषा पाटनी ने छूटते संस्कार एवं टूटते परिवार पर प्रभावी शोधपत्र प्रस्तुत किया। सुबह का सत्र पंच कल्याणक प्रतिष्ठा विधि के नाम रहा, जिसमें वरिष्ठ आचार्य पं. जयकुमार जैन निशांत टीकमगढ़ की अध्यक्षता एवं पं. रमेशचंद्र बांझल के मुख्य आतिथ्य में, डॉ. शोभा जैन, पं.विनोद कुमार जैन एवं डॉ. भारत शास्त्री ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए।