अपने कर्मों की खाता-बही में संतुलन रखें
इंदौर, । हम सांसों को बाजार से नहीं खरीद सकते। भक्ति भी बाजार में नहीं मिलती। जब तक सांस चल रही है अपने परमात्मा को कभी नहीं भूलें। भगवान उन्हीं लोगों से स्नेह और करूणा रखते हैं जो जीवन में अपने कर्मों की खाता-बही में संतुलन बनाकर चलते हैं। भगवान ने हमें मुक्ताकाश तो दिया है, लेकिन न तो मृत्यु की तिथि बताई है और न ही हमारी एमआरपी (अधिकतम कीमत) बताई है। हमारे कर्म ही हमारे अगले जन्म के पाप पुण्य का निर्धारण करेंगे।
मालवी और खड़ी बोली के प्रख्यात भागवताचार्य पं. अनिल शास्त्री ने आज लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याणधाम, खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में उक्त प्रेरक बातें कही। हंसदास मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में कथा शुभारंभ के पूर्व व्यासपीठ का पूजन पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता, पं. पवनदास शर्मा, वर्षा शर्मा, मंजू शर्मा, ज्योति शर्मा आदि ने किया। राधारानी महिला मंडल की बहनों ने विद्वान वक्ता की अगवानी की। कथा स्थल पर विद्वानों द्वारा भागवत का मूल पारायण भी जारी है। नए वर्ष की अगवानी में 1 जनवरी को मंदिर के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में महाप्रसादी का आयोजन भी होगा। कथा में आने वाले भक्तों से कोविड नियमों का अऩिवार्यतः पालन करने का आग्रह किया गया है।
पं. शर्मा ने कहा कि भागवत केवल कथा, पोथी या ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के राजपथ पर आने वाली अड़चनों से मुक्ति दिलाने की रामबाण औषधि है। मनुष्य परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना है इसलिए भगवान के शब्दकोष में हमारे लिए दुख नाम का शब्द है ही नहीं। समय से बड़ा कोई मरहम नहीं होता। गीता में भी कर्मों की श्रेष्ठता का संदेश दिया गया है। कर्मफल ही हमारा भविष्य या अगला जन्म निर्धारित करते हैं। भगवान उन्हीं को अपनी गोद में बुलाते हैं, जो उन्हें प्रिय होते हैं।