आतंकियों से मुकाबले में उन्हें दंड देना भी धर्म और पुण्य का काम  – शंकराचार्यजी  

आतंकियों से मुकाबले में उन्हें दंड देना भी
धर्म और पुण्य का काम  – शंकराचार्यजी  

इंदौर, । भारतीय संस्कृति दया, सदभाव और परमार्थ की है, लेकिन जब देश की सुरक्षा का मामला हो या आतंकवादियों से मुकाबले की बात हो तो उन्हें दंड देना भी धर्म और पुण्य का काम है, सबसे बड़ा राष्ट्र धर्म होता है। हमारे सैनिक देश की सीमाओं पर जिस तरीके से रक्षा करते हैं, वह नमन, वंदन और अभिनंदन का ऐसा काम है, जो हर देशवासी के मन में श्रद्धा और विश्वास की भावना को मजबूत बनाता है। भारतीय सैनिकों की शौर्य गाथा सारे विश्व में जानी और मानी जाती है। अधिकारों के साथ कर्त्तव्य के प्रति भी सजगता होना चाहिए। हम भाग्यशाली हैं कि देश की सभी सीमाएं सुरक्षित बनी हुई है। हमारे सैनिकों का आत्मबल एवं मनोबल हमेशा ऊंचा रहना चाहिए। सेना को आतंकवादियों से मुकाबले के लिए पूरी छूट भी मिलना चाहिए।

       जगदगुरु शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने आज शाम बिजासन रोड स्थित अखंडधाम आश्रम पर चल रहे 54वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में सीमा सुरक्षा बल के जवानों को संबोधित करते हुए उक्त दिव्य और प्रेरक विचार व्यक्त किए। बीएसएफ के आईजी अशोक यादव को इस अवसर पर जगदगुरु शंकराचार्य, चित्रकूट पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज, महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप एवं अन्य साधु-संतों ने शाल-श्रीफल के साथ शौर्य की प्रतीक तलवार भेंटकर सम्मानित किया। समाजसेवी विजयसिंह परिहार, बालकृष्ण छाबछरिया, पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा, बालकृष्ण अरोरा, आयोजन समिति के अध्यक्ष हरि अग्रवाल, सचिन सांखला, किशोरसिंह सौलंकी, राज सोनगरा, मोहनलाल सोनी, धर्मेश यादव, शंकरलाल वर्मा आदि भी इस अवसर पर उपस्थित थे। इसके पूर्व बीएसएफ जवानों के सम्मेलन स्थल पहुंचने पर तिरंगे झंडों और पुष्प वर्षा के बीच उनकी अगवानी की गई। प्रारंभ में वंदे मातरम की प्रभावी प्रस्तुति श्रीमती सरस्वती पेंढारकर ने दी। इस बीच सम्मेलन स्थल पर भारत माता की जय और देश के वीर जवानों की जय के उदघोष गूंजते रहे। सम्मेलन स्थल को राष्ट्रभक्ति के प्रतीक चिन्हों और रंगों से श्रृंगारित किया गया था। यह संभवतः पहला मौका था जब बीएसएफ के जवानों ने किसी जगदगुरु शंकराचार्य के सानिध्य में पहुंचकर राष्ट्र धर्म और अध्यात्म जैसे विषय़ पर उनके प्रवचन सुने। बीएसएफ के आईजी अशोक यादव ने भी अपने उदबोधन में इस आयोजन के लिए आश्रम के संचालकों एवं संत सम्मेलन के आयोजकों के प्रति आभार मानते हुए कहा कि आजादी राजनीतिक ही नहीं, मानसिक भी होना चाहिए। इसके लिए चेतना का ज्ञान धर्मगुरुओँ से ही मिल सकता है। हमारी सेनाओं को धर्म गुरुओं से समय-समय पर आशीर्वाद मिलते रहे हैं। देश के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी देने वाले जवान तो सीधे ही मोक्ष को प्राप्त होते हैं, यह हमारे धर्मशास्त्रों में भी लिखा गया है।

       जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने कहा कि आतंकतवादियों को दया की नहीं, दंड देने की जरुरत है। देश को नुकसान पहुंचाने वाला कभी भी दया का पात्र नहीं हो सकता। हमारी संस्कृति भले ही परमार्थ और दया की हो, लेकिन देश, काल और परिस्थिति के अनुसार हमें आतंकवादियों के खात्मे के लिए कठोर निर्णय लेने की भी छूट होना चाहिए। सैनिक का जीवन अनुशासन का होता है, लेकिन कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं जब सैनिकों को अपने विवेक से निर्णय लेना होता है। हमारे धर्मशास्त्र भी यही कहते हैं कि जब देश की रक्षा की बात हो तो दया और परमार्थ नहीं, बल्कि दंड का ही निर्णय श्रेष्ठ होगा। लोभ और लालच के कारण सीमा पर घुसपैठ की घटनाएं भी होती है। कई बार लोभ के चलते हत्याएं भी होती है। इनसे मुकाबले के लिए हमें सैनिकों को पूरी छूट देना होगी। अधिकारों के साथ कर्तव्यों के पालन में भी सजगता होना चाहिए। राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा होता है। सैनिक बचेंगे तो हम भी बचेंगे और देश भी बचेगा। जिन हालातों में हमारे सैनिक अपने कर्त्तव्य को अंजाम देते हैं, वे नमन, वंदन और अभिनंदन के हकदार है। भारतीय धर्मशास्त्र भी देश को सर्वोपरि मानते हैं। मेरी कामना है कि देश के सभी जवान सुरक्षित, सतर्क और हमेशा राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित बने रहे। धर्म भी यदि अनीति के साथ किया गया तो वह भी अधर्म की श्रेणी में ही माना जाएगा। हमारे सैनिक बलवान और बुद्धिमान बने, उनका आहार सात्विक रहे और वे हमेशा देश के लिए सेवा का जज्बा लेकर काम करें, यही हम सबकी प्रार्थना है। उनके बल, बुद्धि और जीवन की रक्षा के लिए हम सब प्रार्थना करते हैं। इस अवसर पर साध्वी अर्चना दुबे एवं गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती एवं चौबारा जागीर के संत नारायणानंद ने भी अपने जोशीले उदबोधन में सैनिकों के शौर्य एवं कर्त्तव्यपरायणता की प्रशंसा की। समापन अवसर पर सीडीएस जनरल बिपिन रावत एवं अन्य शहीद जवानों के लिए दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि समर्पित की गई।