इंदौर, । भगवत तत्व को जानने की जिज्ञासा का नाम है वेदांत। शरीर और आत्मा के अंतर को वेदांत के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है। जीवन के कर्म और व्यवहार क्षेत्र में हर दिन आने वाले संशयों का हल वेदांत में मिलता है। वेदांत का चिंतन हमारे अंतःकरण को निर्मल और पवित्र बनाने का माध्यम है। अज्ञान के आवरण को हटाने के बाद ही आत्म तत्व का बोध होगा।
जगदगुरु शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने आज शाम बिजासन रोड स्थित श्री अविनाशी अखंड धाम आश्रम पर 54वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन की धर्मसभा में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। चित्रकूट पीठाधीश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी दिव्यानंद महाराज की अध्यक्षता में चल रहे इस सम्मेलन में आज मुंबई के महामंडलेश्वर स्वामी चिदम्बरानंद सरस्वती, स्वामी नारायणानंद, महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती, साध्वी अर्चना दुबे, गोराकुंड रामद्वारा के संत अमृतराम रानस्नेही आदि ने वेदांत की महत्ता पर अपने प्रभावी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में जगदगुरु शंकराचार्य के आगमन पर विद्वानों द्वारा वैदिक मंगलाचरण के बीच आयोजन समिति की और से अध्यक्ष हरि अग्रवाल, महामंत्री दीपक जैन टीनू, ठा. विजयसिंह परिहार, सचिन सांखला, दीपक चाचर, राजेन्द्र मित्तल, बालकृष्ण छाबछरिया, मोहनलाल सोनी, भावेश दवे, आदित्य सांखला, सुश्री सरस्वती पेंढारकर, किरण ओझा, कंचन देवी मेड़तवाल आदि ने उनका पादुका पूजन किया।
आश्रम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप ने कहा कि महापुरुषों का जीवन प्रेरणादायी होता है। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि ऐसे समर्पित और सेवाभावी संतों का सान्निध्य हमें घर बैठे मिल रहा है। हमारे जीवन में वेदों का महत्व इतना अधिक है कि हमारी सारी दिनचर्या और कार्यशैली वेदों से ही प्रेरित होना चाहिए। मनुष्य में कई तरह के गुण-दोष होते हैं। दोषों के निवारण हेतु सत्संग और संतों का सानिध्य जरूरी है। गंदे कपड़े धोने के लिए साबुन की जरुरत होती है उसी तरह गंदे अंतःकरण को धोने के लिए सत्संग रूपी साबुन चाहिए।