नाच नचाती रोटियाँ- डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*लघुकथा)”*

 

भास्कर का जीवन पता नहीं क्यूँ संघर्षों का सामना करने में ही बिता। बाल्यकाल में पिताजी का दिवाला निकल गया और पिताजी के मित्र के यहाँ दुकान पर नौकरी करनी पड़ी। इज्जत खराब न हो इसलिए पूरे दिन के लिए जरूरत के हिसाब से आटा लेकर आना होता और रोटियाँ बनाई जाती। बस इसी तरह बचपन से जवानी तक का समय निकल गया। अब जवानी के समय पिताजी ने सलाह दी तो गाँव छोड़कर नौकरी के लिए शहर को प्रस्थान किया। विवाह भी करना था इसलिए फेक्ट्री में नौकरी कर ली। गृहस्थी की गाड़ी में रोटी जुगाड़ते-जुगाड़ते कैसे समय बीत रहा था कुछ पता ही न चला।

किसी तरह भी जीवन यापन हो रहा था की अचानक बीच में फेक्ट्री बंद हो गई और फिर रोटी के लिए अगला नाच करना पड़ा। अब उसे व्यवसाय का रुख करना पड़ा। रोटी की जुगाड़ के लिए सारे पापड़ बेलने पड़ें। खुद की तो कोई पूँजी नहीं थी इसलिए दूसरों का सामान ही घर-घर जाकर बेचना पड़ा। कुछ समय पश्चात दूध, किराना, आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी बेचना शुरू किया। सारे प्रयासों के पश्चात भी केवल दिनभर की रोटी की व्यवस्था ही कर सका। वृद्धावस्था आ गई, कई सारी बीमारियों ने शरीर को ठिकाना बना लिया, पर रोटी की व्यवस्था के लिए फिर चौकीदारी की नौकरी करनी पड़ी और इस रोटी के जुगाड़ को करते-करते ईश्वर में लीन हो गया। भास्कर की पूरी जिंदगी रोटी के पीछे नाचते-नाचते खत्म हो गई। जन्म से लेकर मृत्यु का समय कैसे बिता कुछ भी पता न चला।

इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है कि भूख की चीख असहनीय होती है इसलिए ईश्वर की दी हुई रोटी का जरूर सम्मान करें। क्या पता कितने लोग इस रोटी के जुगाड़ को पूरा करने के लिए अविराम नाचते रहते है। प्रत्येक क्षण ईश्वर को धन्यवाद दे और रोटी को आनंदित होकर ग्रहण करें। अपनी क्षमता और सामर्थ्य के अनुसार किसी जरूरतमन्द को भी प्रेम पूर्वक रोटी खिलाए।