ट्रंप जल्दी में – परिणाम अनुचित होंगे – प्रो. डी.के. शर्मा

डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव जीतने के बाद सबको उनके शपथ लेने के प्रतिक्षा थी। आशा थी कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन की नीतियों में सकारात्मक परिवर्तन होंगे। अपेक्षा थी कि युक्रेन युद्ध का उचित समाधान निकल पाएगा जिससे युक्रेन की स्वतंत्रता और अस्तित्व बचा रहेगा। उनका पहला कार्यकाल युद्ध रहित रहा था इस कारण पूरी दुनिया को विश्वास था कि पुतिन से बातचीत करके युक्रेन के पक्ष में सम्मानजनक निर्णय करवा सकेंगे, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। युक्रेन के लिए सम्मानजनक निर्णय की कोई संभावना भी दिखाई नहीं दे रही। ट्रम्प इतनी जल्दी में हैं कि सबकुछ गड़बड़ा दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी अमेरिका को बाहर कर लिया। अब उनके प्रमुख सलाहकार एलन मस्क सलाह दे रहे हैं कि युएनओ से भी अमेरिका को बाहर निकल जाना चाहिए। वैसे हम भी मानते हैं कि यूएनओ एक निरर्थक संस्था है और उस पर प्रतिवर्ष खर्च होने वाले कई अरब डॉलर निरर्थक जा रहे हैं। इस खर्च का सबसे बड़ा भाग अमेरिका ही देता है। ट्रम्प नाटो के सदस्यों को भी आंख दिखा रहे हैं और उन्हें नाटो का खर्च स्वयं उठाने को कह रहे हैं। इजराइल के लिए सहायता की नीति ट्रम्प बदल नहीं रहे किन्तु युक्रेन के लिए सबकुछ बदल देना चाहते हैं। इसी कारण युक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से ट्रम्प की मुलाकात बुरी तरह असफल रही। ट्रम्प ने जेलेंस्की को रशिया से बात कर और उसकी शर्ते मानकर समझौता करने के लिए बहुत दबाव डाला। यह बहुत अनुचित है।
पूरा विश्व जानता है कि युक्रेन अपने स्वतंत्र अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। उसका युद्ध पुतिन की विस्तारवादी नीति के विरुद्ध है। पुतिन अपनी साम्राज्यवादी नीति से युक्रेन को समाप्त करना चाहते हैं। वे रूस को पुराने ज़ार के साम्राज्य के समान पुनः बनाना चाहते हैं। बाइडेन ने रूस के विरुद्ध युद्ध में युक्रेन को आत्मरक्षा के लिए पुरी मदद दी, किन्तु ट्रम्प ने वह मदद बंद कर दी। वे चाहते हैं कि ज़ेलेंस्की पुतिन से बात करके उनकी शर्ते मानकर युद्ध बंद कर दें। पुतिन की शर्तें सबको मालूम है। पुतिन चाहते हैं कि युक्रेन फिर से रूस का हिस्सा बन जाए। युक्रेन को यह मंजूर नहीं, किन्तु ट्रम्प यही चाहते हैं। उनको युक्रेन की स्वतंत्रता की चिंता नहीं। वे केवल अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखना चाहते हैं। शपथ के पूर्व उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपति बनते हीं वे युक्रेन युद्ध समाप्त करवा देंगे। किसी ने सोचा भी नहीं था कि वे युक्रेन को रूस की शर्तों पर समझौता करने के लिए कहेंगे। पता नहीं पुतिन ने क्या जादू किया।
समस्या केवल युद्ध बंद करने की नहीं है। वास्तविक समस्या युक्रेन के स्वतंत्र अस्तित्व को बनाए रखने की है। युद्ध पुतिन ने शुरू किया, उन्होंने युक्रेन पर आक्रमण किया। यदि पुतिन की बात मान ली जाए तो युक्रेन का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ट्रम्प को इसकी चिंता नहीं, वे चाहते हैं कि उनकी बात रह जाए, युक्रेन का चाहे जो हो।
व्हाइट हाउस में ज़ेलेंस्की और ट्रम्प के बीच खुलेआम बहस हुई। शायद ही कभी दो राष्ट्र प्रमुखों के बीचे में इस तरह से खुलेआम बहस हुई हो। ट्रम्प ने अपमानजनक शब्दों का उपयोग भी ज़ेलेंस्की के लिए किया फिर भी ज़ेलेंस्की दबाव में नहीं आए। उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ट्रम्प ने युक्रेन के लिए मदद बंद कर दी। इस निर्णय से नाटो और अमेरिका के बीच में भी मतभेद हो गए। इसका भी दूरगामी परिणाम पूरे विश्व पर होने वाला है।
ट्रम्प के निर्णय ने पूरे विश्व की व्यवस्था को बदल दिया। उनके रूस के पक्ष में खड़े होने का निर्णय का औचित्य समझ से परे है। वर्तमान में चीन अमेरिका का प्रमुख प्रतिद्वंदी है – सुरक्षा और व्यापार दोनों क्षेत्र में ताईवान को लेकर भी अमेरिका और चीन के बीच में बड़ी तनातनी है। रूस, चीन, उत्तरी कोरिया, ईरान अमेरिका के प्रमुख विरोधी हैं। युक्रेन युद्ध में इरान और उत्तरी कोरिया रूस की बहुत मदद कर रहे हैं। इरान इजराइल को भी बर्बाद करना चाहता है जबकि अमेरिका के सहारे ही इजराइल जिंदा है। रूस के पक्ष में खड़े होकर ट्रंप चीन, इरान, उत्तरी कोरिया के साथ खड़े हो गए हैं। उनके इस निर्णय का कारण समझना बहुत कठिन है। उनके इस निर्णय से नाटो और अमेरिका के संबंध भी खराब हो गए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अमेरिका युरोप को पूरी सहायता – समर्थन देता रहा है। ट्रंप के एक निर्णय ने अमेरिका के नाटो देशों से संबंध को बिगाड़ दिया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रजातांत्रिक और तानाशाही वाले देशों के बीच तनाव हमेशा से रहा है। अमेरिका प्रजातांत्रिक देशों का सर्वामान्य नेता रहा है। ट्रंप के निर्णय से सबकुछ बदल गया। अमेरिका तानाशाही वाले देशों के पक्ष में हो गया। यह निर्णय समझ के परे है। यदि ट्रम्प अपने इस निर्णय पर टीके रहे तो दुनिया के प्रजातांत्रिक देश बहुत बड़े खतरे में पड़ जाएंगे। अमेरिका को भी हर तरह से नुकसान होगा।
ट्रम्प क्या चाहते हैं? क्या वे चीन, रूस और उत्तरी कोरिया के साथ स्थायी रूप से रहना चाहते हैं? वे यह भुल गये कि उत्तरी कोरिया का तानाशाह हमेशा अमेरिका को मिसाईल और एटमबम से नष्ट करने की धमकी देता रहता है। वह युद्ध में रूस की मदद भी कर रहा है। चीन अमेरिका का व्यापार में भी बड़ा प्रतिद्वंदी है। ताईवान को लेकर चीन और अमेरिका की सेना आमने – सामने खड़ी है। अमेरिका ने क्वाड भी चीन के विरूद्ध ही बनाया है।
ट्रम्प अपने पड़ौसी देशों को भी धमका रहे हैं। वे कनाडा को संयुक्त राज अमेरिका का एक राज्य बनने को कह रहे हैं। कनाडा को यह स्वीकार नहीं। पनामा को भी ट्रम्प धमकी दे रहे हैं। इस तरह से उन्होंने कई मोर्चे एक साथ खोल दिये हैं। लगता है ट्रम्प बिना गंभीर विचार-विमर्श किये निर्णय ले रहे हैं। उनके जल्दबाजी पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा कर सकती है। उनके सलाहकारों को ट्रम्प को सचेत करना चाहिए। यह प्रजातांत्रिक देशों के लिए आवश्यक है।