ज्ञान और भक्ति के समन्वय का अनूठा ग्रंथ है गीता

इंदौर, । गीता का संदेश ज्ञान और भक्ति के समन्वय का विलक्षण और अनूठा संदेश है। भगवान ने अपने भक्तों पर कृपा और करुणा की वर्षा करने के लिए ही गीता का संदेश दिया है। अर्जुन गीता का ज्ञान प्राप्त करने वाला पहला व्यक्ति इसलिए बना कि उसने भगवान के प्रति शरणागति का भाव स्वीकार किया था। सबसे अनुपम विशेषता इस ग्रंथ की यह है कि भगवान ने बिना किसी के मांगे गीता रूपी अमृत का प्राकट्य किया है। जिनके अंतःकरण में शुद्ध भक्ति और परमेश्वर के प्रति शरणागति का भाव हो, वही गीता का सच्चा अनुयायी हो सकता है।

        जगदगुरु वल्लभाचार्य गोस्वामी श्री वल्लभ राय महाराज (सूरत) ने आज गीता भवन में चल रहे 64वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा को संबोधित करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भक्ति के साथ ज्ञान को भी भगवान की प्राप्ति का माध्यम माना गया है, लेकिन अनेक विद्वानों ने केवल भक्ति को ही प्राथमिकता दी है। भगवान ने स्वयं अर्जुन को युद्ध के मैदान में जो संदेश दिया है उसमें यही कहा है कि शरणागति ही भक्ति का पहला सौपान है।  धर्मसभा की अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने की। इस अवसर पर डाकोर से आए स्वामी देवकीनंददास, उज्जैन के स्वामी परमानंद, उज्जैन के स्वामी असंगानंद, गोराकुंड रामद्वारा के संत अमतृतराम रामस्नेही, जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजय शंकर मेहता, एवं अहमदाबाद से आए आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाणी पीठाधीश्वर स्वामी विशोकानंद भारती ने भी गीता की महत्ता बताई। अध्यक्षीय उदबोधन के साथ आज के सत्संग सत्र का समापन हुआ। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, न्यासी मंडल के प्रेमचंद गोयल, पं. महेशचंद्र शास्त्री, मनोहर बाहेती, हरीश जाजू, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, सत्संग समिति के जे.पी. फड़िया, विष्णु बिंदल, अरविंद नागपाल आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। गीता जयंती महोत्सव के साथ आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में विष्णु महायज्ञ का दिव्य अनुष्ठान भी जारी है।

        आज के प्रवचन – जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजयशंकर मेहता ने कहा कि कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया है। एक ओर जीवन है तो दूसरी ओर जीविका। यह बहुत कठिन दौर चल रहा है। गीता के संदेश जीवन को खुशनुमा बनाने के लिए हैं। पहले 6 अध्यायों में हमारे जीवन की कहानी है। अध्याय 7 से 12 तक भक्ति योग है। हम सब लोग शरीर को ही मुख्य मानते हैं, जबकि गीता में आत्मा को प्रमुख कहा गया है। कथा सुनने वाले लोग गर्दन तो इस तरीके से हिलाते हैं कि आज ही मोक्ष में चले जाएंगे। गीता केवल सुनने के लिए नहीं, बल्कि आचरण में उतारने के लिए है। हमारा आचरण ज्ञानयुक्त होना चाहिए। गीता के संदंर्भ में हमें वर्ष 2022 में तीन प्रमुख बातों का ध्यान रखना होगा – पहला सावधानी, दूसरा परिवर्तन और तीसरा अज्ञात। इसका आशय यह हुआ कि हमें वर्ष 2022 और उसके बाद पूरी तरह से सावधान रहना होगा। परिवर्तन जीवन का नियम है और ताजा संदर्भों में निश्चित ही अनेक बदलाव हमें देखना होंगे। अज्ञात इसलिए कि हम खुद नहीं जानते और दूसरे कोई भी नहीं जानते कि आने वाले समय में हमारे सामने क्या-क्या विकट परिस्थितयां आएंगी, लेकिन  गीता जीवन के प्रति आशान्वित होने का संदेश देती है। भगवान ने स्वयं कहा है कि किसी भी तरह की निराशा हो मेरी शरण में आने के बाद जीवन में दुख नहीं आएगा। हमने पिछले दिनों में मृत्यु को तांडव करते देखा है, जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु तो तय है, लेकिन हम अपने बचे हुए समय में स्वयं को कितना सार्थक और दूसरों के लिए भी उपयोगी बना सकते हैं, इसका गीता के संदेशों में उल्लेख है। मृत्यु हमारे पास नहीं आती, हम मृत्यु के पास जाते हैं। क्रोध, लोभ, असूया मोह, द्रोह, कठोर वाणी और निर्लज्जता जैसे आठ दोष हैं जो हम सबमें पाए जाते हैं। असूया वृत्ति अर्थात किसी के गुणों में भी दोष ढूंढना। गीता भवन से लौटकर घर जाकर मुस्कुराइए और हमेशा स्वयं भी खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखो यही गीता का सार है। डाकोर से आए स्वामी देवकीनंददास ने कहा कि गीता श्रवण, मनन और मंथन से हम अहंकारमुक्त हो सकते हैं। गीता में मनुष्य से जुड़े सभी बिन्दुओं का समाधान मौजूद है। बाहर के अंधकार को दूर करने के सभी साधन हमारे पास हैं, लेकिन अंतर्मन का अंधकार तो गीता के मनन-मंथन से ही दूर हेगा। उज्जैन के स्वामी परमानंद ने कहा कि गीता में निष्काम कर्म पर जोर दिया गया है। युद्ध के मैदान में गृहस्थ जीवन को संवारने का संदेश देकर भगवान ने भक्तों पर करुणा और कृपा ही की है। उज्जैन से आए स्वामी असंगानंद ने कहा कि मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे अनेक मनोविकार भरे हुए हैं। गीता के श्रवण और मनन से इन विकारों से मुक्ति मिल सकती है। गीता में संसार की हरेक समस्या का समाधान है। गोराकुंड रामद्वारा के संत अमृतराम रामस्नेही ने कहा कि हम कई तरह के व्रत, उपवास और पूजा-पाठ करते हैं, इसके बावजूद हमारे जीवन में कई तरह के कष्ट आते रहते हैं। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम अपने व्रत-उपवास छोड़ दें। गीता के ज्ञान का थोड़ा सा भी अंश हमारे जीवन में उतर जाएगा तो जीवन धन्य हो जाएगा। संसार में हम सब अर्जुन की तरह निमित्त हैं। किसी के भी बिना संसार का कोई काम नहीं रुकता। विधाता ने जो लिखा है उसे कोई भी नहीं मिटा सकता। अर्जुन की तरह हमें भी गीता से सबक लेकर अपना मोह भंग करना होगा। अध्यक्षीय आशीर्वचन में जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने सबके मंगल की कामना करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति ज्ञान के साथ विज्ञान सम्मत भी है। हमारे धर्मग्रंथों में बहुत शक्ति है। गीता एक अनूठ और शाश्वत ग्रंथ है। हम बुद्धि एवं मन को परमेश्वर में समाहित करें और भगवान की कृपा की अनुभूति करें, यही गीता का मुख्य संदेश है।