संपत्ति की तरह शांति की खोज में भटकने वाले गीता जैसे कल्पवृक्ष की छाया में आएं – स्वामी रामदयाल

इंदौर, । ज्ञान के समान अन्य कोई पवित्र पूंजी नहीं हो सकती। ज्ञान श्रद्धा से ही मिलेगा। संपत्ति की तरह शांति को खोज में भटकने वाले यदि गीता जैसे कल्पवृक्ष की छाया में आ जाएं तो उनकी प्रत्येक कामना पूरी हो सकती है। गीता जयंती का पर्व उस प्रकाश पर्व की तरह है, जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को आलौकित बनाने के लिए पर्याप्त है। वास्तविक शांति गीता के ज्ञान से ही मिलेगी। गीता भवन जैसे आस्था केन्द्र पीड़ित मानवता की सेवा के क्षेत्र में भी समर्पित भाव से काम कर रहा है, यह अन्य संस्थाओं के लिए भी प्रेरणा का विषय है।

       अंतराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने आज मनोरमागंज स्थित गीता भवन में 64वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव के शुभारंभ समारोह में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। वरिष्ठ समाजसेवी विनोद अग्रवाल, टीकमचंद गर्ग, मनोहर बाहेती ने गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन एवं सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी के साथ जगदगुरु के सान्निध्य में दीप प्रज्ज्वलन कर इस महोत्सव का शुभारंभ किया। प्रारंभ में ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल ने ट्रस्ट एवं महोत्सव की जानकारी देते हुए शहर के भक्तों की ओर से सभी आए हुए संतों का स्वागत किया। इस अवसर पर ट्रस्ट मंडल की ओर से टीकमचंद गर्ग, महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, हरीश जाजू, विष्णु बिंदल, आदि ने सभी संतों की अगवानी की। आज की सत्संग सभा में रामकृष्ण मिशन इंदौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद, भदौही  के पं. सुरेश शरण, गोंडा के पं.प्रहलाद मिश्र रामायणी, नेमिषारण्य के स्वामी पुरुषोत्तमानंद, गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती ने भी अपने प्रवचन में गीता की महत्ता बताई। मंच का संचालन महेशचंद्र शास्त्री ने किया और आभार माना टीकमचंद गर्ग ने । इस अवसर पर अखंडधाम आश्रम इंदौर के  महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. चेतनस्वरूप एवं उनकी संत मंडली भी उपस्थित थी। शुभारंभ अवसर पर आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री के निर्देशन में वैदिक मंगलाचरण एवं शंख ध्वनि के बीच दीप प्रज्ज्वलन हुआ।

शहीदों को श्रद्धांजलि – आज के सत्संग के समापन अवसर पर जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने संत समाज, गीता भवन ट्रस्ट एवं भक्त मंडल की ओर से देश के सीडीएफ बिपिन रावत एंव 13 अन्य सैन्य़ अफसरों की शहादत पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि यह देश के लिए अपूरणीय क्षति है। देश का संत समाज इस दुखद बेला में सेना और शोकाकुल परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता है। इस अवसर पर राधा भाव जागृति मिशन के संस्थापक स्वामी देवमित्रानंद गिरि एवं गीता भवन से जुड़े अन्य संतों के निधन पर भी श्रद्धासुमन समर्पित किए गए।

       प्रवचन –   गीता जयंती महोत्सव के शुभारंभ पर रामकृष्ण मिशन इंदौर के स्वामी निर्विकारानंद ने कहा कि सदमार्ग पर चलने वाले व्यक्ति का कभी पतन नहीं हो सकता। कोरवों की संख्या अधिक होने के बावजूद महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई, क्योंकि उनके साथ स्वयं भगवान कृष्ण थे। हम अपने प्रत्येक कर्म को पूजा की तरह पूरा करें तो निश्चित ही उसका सार्थक हल मिलेगा। अर्जुन ने कृष्ण को अपना सारथी बना लिया था, इसी तरह हम भी यदि अपने जीवन की बागडोर भगवान के हाथों सौंप देंगे तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी विजयश्री  सुनिश्चित हो जाएगी। भदौही से आए पं. सुरेश शरण ने कहा कि कलियुग में भगवान के नाम स्मरण मात्र से ही हमारे सारे कष्ट दूर हो सकते है। गीता के संदेश कभी पुराने नहीं होते। यदि हम पूरी निष्ठा से गीता के संदेश अपना लें तो जीवन सुधर जाएगा। गोंडा से आए पं. प्रहलाद मिश्र रामायणी ने कहा कि अर्जुन जैसा भाग्यशाली और कौन होगा जिसके सारथी स्वयं भगवान कृष्ण बने। गीता के प्रत्येक संदेश में हमारे जीवन को सार्थक बनाने की बातें कही गई है। जीवन की रोजमर्रा की समस्याओं का हल गीता में मौजूद है। नैमिषारण्य से आए स्वामी पुरुषोत्तमानंद ने कहा कि गीता का ज्ञान युद्ध के मैदान में दिया गया, यह एक विचित्र बात है। अर्जुन तो निमित्त था, हम सबके लिए भी वह ज्ञान हर काल और युग में प्रासंगिक है। गोधरा से आई साध्वी परमानंदा सरस्वती ने भी गीता की महत्ता बताई। इसके पूर्व गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन एवं सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी ने महोत्सव तथा ट्रस्ट की जानकारी देते हुए सभी संत विद्वानों का स्वागत किया।