राम राज्य तभी सार्थक होगा , जब  घट-घट और  घर-घर  में राम-सीता की प्राण प्रतिष्ठा होगी – दीदी मां मंदाकिनी

इंदौर,  । रामकथा भारतीय समाज को मर्यादित और संस्कारित बनाने का सबसे सरल और सहज माध्यम है। रामकथा केवल कथा नहीं, समाज को चैतन्य और उर्जावान बनाने की संजीवनी है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम और सीताजी समर्पण एवं भक्ति की प्रतीक हैं, तो हनुमानजी बल, बुद्धि और विवेक के प्रदाता हैं। अयोध्या में राम मंदिर तो बन ही रहा है, लेकिन सही मायने में राम राज्य तभी सार्थक होगा जब घट-घट और घर-घर में राम-सीता की भी प्राण-प्रतिष्ठा होगी। मानस का सुंदरकांड हम सबके जीवन में प्रेरणा और भक्ति के साथ संस्कारों का सृजन भी करता है।

      संगम नगर स्थित श्रीराम मंदिर परिसर में गत 29 नवम्बर से चल रहे श्री रामकथा ज्ञान यज में प्रख्यात कथाकार दीदी मां मंदाकिनी श्रीराम किंकर ने आज सुंदरकांड के विभिन्न प्रसंगों की प्रभावी व्याख्या के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। आज कथा पांडाल भक्तों से पूरी तरह लबालब बना रहा। श्रीराम शिवशक्ति मंदिर शैक्षणिक एवं पारमार्थिक न्यास के तत्वावधान में चल रहे इस ज्ञान यज्ञ में आज आयोजन समिति की और से समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, विष्णु बिंदल, टीकमचंद गर्ग, वैष्णव ट्रस्ट के राधाकिशन सोनी, अरविंद गुप्ता, अनूप जोशी, गोलू शुक्ला एवं संगम नगर रहवासी संघ की ओर से व्यासपीठ का पूजन किया गया। संचालन गोविंद पंवार ने किया। समापन अवसर पर आयोजन समिति द्वारा दीदी मां का शाल-श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह तथा प्रशस्ति पत्र भेंटकर सम्मान किया गया।

      सुंदरकांड में हनुमानजी के लंका प्रवेश के प्रसंग की व्याख्या करते हुए दीदी मां ने कहा कि एक क्षण का सत्संग भी जीवन की दशा और दिशा बदल सकता है। लंका के प्रवेश द्वार पर तैनात लंकिनी नामक राक्षसी ने जब हनुमानजी को मच्छर के रूप में घुसते हुए पकड़ लिया तब हनुमानजी ने मुक्का मारकर उसे मूर्छित कर दिया, लेकिन मूर्छा हटते ही लंकिनी ने हनुमानजी के प्रति धन्यता का भाव व्यक्त किया और कहा कि आपके इस सत्संग से मुझे बोध हो गया है कि वास्तव में रावण की लंका नगरी माया की नगरी है। माया का आवरण सत्संग से ही हट सकता है। सत्संग के जो चार प्रभाव व्यक्ति पर होते हैं उनमें संसार की भौतिक वस्तुओं के प्रति राग का नष्ट होना, अंतर्मन के विषयों के अभाव में जो कमजोरी आती है उसे दूर करना, पुरानी स्मृतियों को वापस प्राप्त करना और लंकिनी की तरह प्रवृत्ति को नष्ट नहीं करना बल्कि उसे बदलना है। सत्संग से ही यह संभव है। हनुमानजी ने लंकिनी का वध नहीं किया, क्योकि वह रावण के प्रभाव से उसकी ड्यूटी कर रही थी। लंकिनी रावण द्वारा नियुक्त लंका की अधिष्ठात्री देवी थी। रावण मूर्तिमान मोह का प्रतीक है। रावण के परिवार में कुंभकर्ण अहंकार, मेघनाद काम और विभीषण जीव के प्रतीक हैं। इन प्रवृत्तियों से मुक्ति के लिए रामकथा से ज्यादा प्रभावी और कोई कथा या ग्रंथ नहीं हो सकता। दुनिया के जितने भी धर्म हैं, उनमें हनुमान जैसा व्यक्तित्व नहीं मिल सकता।