अहिल्या माता गोशाला पर चल रहे प्रशिक्षण शिविर में लहसुन, प्याज एवं अदरक के अर्क से खेती को उन्नत बनाने के तरीके

अहिल्या माता गोशाला पर चल रहे प्रशिक्षण शिविर में लहसुन, प्याज एवं अदरक के अर्क से खेती को उन्नत बनाने के तरीके

इंदौर। केशरबाग रोड स्थित अहिल्यामाता गोशाला पर चल रहे पांच राज्यों के किसानों एवं गोशालाओं से जुड़े स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण शिविर में आज किसानों ने गोमूत्र, निंबोली पावडर, नीम या अरंडी की खली, बीजामृत, बीज एवं पत्तियों के अर्क के साथ ही मिर्च, लहसुन, प्याज एवं अदरक के अर्क से देसी खाद बनाने की विधियों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। भोपाल एवं जबलपुर से आए कृषि विशेषज्ञों ने इन सभी विधियों का प्रशिक्षण देते हुए यह भी बताया कि इस तरह के खाद बनाने में किसी भी तरह की अंग्रेजी, रासायनिक  या शहरी वस्तुओं की जरुरत नहीं होती। इस तरह के सभी खाद गांव में रहते हुए गांव में उपलब्ध सामग्री से ही तैयार किए जा सकते हैं और इनके उपयोग से हर तरह की मिट्टी को उपजाऊ बनाकर कई गुना अधिक फसल लहलहाई जा सकती है। लागत में भी ये अंग्रेजी खाद से कई गुना कम खर्च पर बन सकते है।

अहिल्यामाता गोशाला प्रबंध समिति के अध्यक्ष रवि सेठी, संयोजक सी.के. अग्रवाल एवं सचिव पुष्पेन्द्र धनोतिया ने बताया कि पिछले मंगलवार से चल रहे इस प्रशिक्षण शिविर में गुजरात के शेकरू डॉट फाउंडेशन, शेजारी फाउंडेशन, सेतु अभियान, कच्छ फोडर फ्रुट एंड फारेस्ट डेवलपमेंट ट्रस्ट, आतापी सेवा फाउंडेशन, कृषि विज्ञान केन्द्र अंबुज नगर, बुंदेलखंड के श्रीजन, राजस्थान के ग्रामीण विकास विज्ञान समिति, पंजाब के खेती विरासत मिशन, जिंद आर्गेनिक, राजस्थान के एकल नारी शक्ति संगठन, उत्तरप्रदेश के धर्मपाल सत्यपाल फाउंडेशन, आगा खान फाउंडेशन, मध्यप्रदेश के ग्रीन फाउंडेशन एवं कर्नाटक के एनसीएनएफ जैसे संगठनों से जुड़े प्रगतिशील किसान भाग ले रहे हैँ। जैव संसाधन केंद्र के तत्तावधान में चल रहे इस प्रशिक्षण शिविर में जबलपुर कृषि वि.वि. के वैज्ञानिक भी कृषकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। आज प्रशिक्षण सत्र के चौथे दिन जैव विशेषज्ञ अजीत केलकर एवं रवि केलकर ने अन्य वैज्ञानिकों के साथ किसानों को विभिन्न तरह के देसी खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने बताया कि गोमूत्र की सही उपयोग करें तो एक कीट नियंत्रक, जीवाणु रोधी, फफूंदनाशी के रूप में भी इसका उपयोग हो सकता है। गोमूत्र जितना पुराना होगा, खेती के लिए उतना ही लाभप्रद होगा। गोमूत्र को एक मटके या प्लास्टिक के पात्र में रख सकते है, लेकिन इसे लोहे के पात्र में नहीं रखना चाहिए। खेत में सिंचाई जल के साथ 10 लीटर गोमूत्र प्रति एकड़ के मान से फसल में दो से तीन बार उपयोग करें तो जमीन में छिपे हुए फफूंद साफ हो सकते हैँ।

     इसी तरह निंबोली अर्थात नीम के फल से भी बढ़िया देसी खाद बनाया जा सकता है। दो क्विंटल गोबर की खाद में दो क्विंटल निंबोली पावडर या दो क्विंटल नीम अथवा अरंडी की खली प्रति एकड़ में डाली जाए तो इससे सफेद लट, दीमक एवं अन्य कीड़ों के नियंत्रण में सफलता मिलेगी। इसी तरह बीजामृत का निर्माण भी एक किलो ताजे गोबर, एक लीटर गोमूत्र,  25 ग्राम कली के चूने, 250 मि.ली. दूध, आधा किलो मेड़ की मिट्टी और 5 लीटर पानी को मिलाकर एक पुराने मटके या प्लास्टिक ड्रम में दो-तीन दिनों तक ढंककर रखें और इस मिश्रम को रोज एक से दो बार लकड़ी से हिलाएं तो उत्तम तरह का बीजोपचार कल्चर तैयार हो जाएगा। इस घोल को बीजों पर इस तरह छिड़कें कि एक हल्का आवरण बन जाए। इन बीजों को छायादार स्थान पर सुखाकर उसी दिन बोवनी करें और सब्जियों के रोपों को जड़ों से एक मिनट के लिए इस घोल में डुबोकर रोपें तो यह बीजामृत की तरह पौधे को स्वस्थ एवं रोगमुक्त बनाता है। आज के प्रशिक्षण सत्र में इस तरह के अनेक देसी खाद बनाने की नुस्खे बताए गए जिनमें बीजों, पत्तियों तथा मिर्च, लहसुन, प्याज एवं अदरक के अर्क से खाद बनाने के तरीके भी शामिल थे।