अंग्रेजी खाद की तुलना में जैविक खाद ज्यादा सस्ती और बेहतर

इंदौर, । डीएपी खाद से न सिर्फ कृषि भूमि का जैविक कार्बन कम होता जा रहा है बल्कि इसे चीन जैसे देशों से आयात कराने से हमारी उन देशों पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में यदि गोशालाओं में वैज्ञानिक आधार पर निर्मित जैविक खाद का इस्तेमाल हो तो न सिर्फ खाद के मामले में देश आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि किसानों को भी आर्थिक बचत होगी।

अहिल्या माता गोशाला प्रबंध समिति के अध्यक्ष रवि सेठी, संयोजक सीके अग्रवाल एवं सचिव पुष्पेंद्र धनोतिया ने बताया कि मंगलवार से मध्यप्रदेश की विभिन्न संस्थाओं की ओर से अहिल्या माता गोशाला के साथ मिलकर जैविक खाद को लेकर पांच राज्यों के किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। गुरुवार को इन सभी किसानों को लेकर मंडलेश्वर स्थित माधव निवास आश्रम गोशाला में जबलपुर कृषि वि.वि. के वैज्ञानिकों के साथ प्रायोगिक जानकारियां दी गई। इस दौरान ग्रीन फाउंडेशन के प्रमुख प्रेमिल कुमार गुप्ता सहित जैव विशेषज्ञ केलकर बंधु, अजीत एवं रवि केलकर ने भी किसानों को खाद से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां दीं।

आर्थिक फायदा : जैव विशेषज्ञ रवि केलकर ने बताया कि यदि किसान जैविक खाद का इस्तेमाल करें तो इससे उन्हें और सरकार दोनों को आर्थिक फायदा होगा। उन्होंने कहा- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने की शुरुआत की है और खाद के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। उन्होंने कहा- डीएपी खाद की 50 किलो की एक बोरी सरकार को करीब 2800 रुपये की पड़ती है, जिसे सब्सिडी के बाद किसान को 1200 रुपये में दिया जाता है। डीएपी खाद की बड़ी मात्रा हम विदेशों से खासकर चीन से मंगवाते हैं, जिससे हमारा पैसा विदेशों में जा रहा है। विदेशी कंपनियां भी लगातार दाम बढ़ाती जा रही हैं, वहीं हम गोशालाओं के माध्यम से उन्नत खाद (रॉक फास्फेट) बनाते हैं तो इसकी 50 किलो की एक बोरी की लागत करीब 200 रुपये पड़ती है। इससे पैसा भी बचेगा और विदेशी कंपनियों पर निर्भरता भी कम होगी।

कृषि भूमि को फायदा : केलकर ने बताया कि डीएपी खाद से जमीन का जैविक कार्बन नहीं बढ़ता है। कृषि भूमि का जैविक कार्बन सभी जगह इसी वजह से कम होने लगा है। जैविक कार्बन बढ़ाने के लिए जैव खाद जरूरी है, लेकिन किसान जानकारी के अभाव में इसे ठीक से पकाते नहीं हैं। इसी का फायदा उठाकर विदेशी कंपनियां रेडिमेड खाद महंगी कीमतों में बेचती हैं। जैविक खाद से खेतों की मिट्टी को फायदा होगा।

जैविक खाद की गुणवत्ता बेहतर : उन्होंने बताया कि डीएपी खाद एनपीके थ्योरी पर काम करता है। जैविक खेती में एनपीके का योगदान तो होता ही है, साथ ही सूक्ष्म जीव व जैविक कार्बन भी खेत में जाते हैं। इससे मिट्टी को फायदा होता है। स्पष्ट है कि जैविक खाद अन्य केमिकल खाद की तुलना में बेहतर है। आजकल किसान भूमि के कठोर होने की शिकायत करते हैं। जैविक खादों से जमीन में केचुओं की संख्या बढ़ती है जिससे कठोर जमीन भी मुलायम होने लगती है, जबकि केमिकल खाद से केचुएं खत्म हो जाते हैं। रासायनिक खाद के कारण धरती भी प्रदूषित हो रही है, जबकि जैविक खाद से धरती प्रदूषित होने से बचती है।

गो आधारित उत्पादों के निर्माण से जुड़ी जानकारी दी : ग्रीन फाउंडेशन के प्रमेल कुमार गुप्ता ने बताया कि मंडलेश्वर स्थित माधवाश्रम न्यास गोशाला में जैविक आदान की उत्पादन इकाई है। यहां आज कार्यशाला में किसानों को गो आधारित उत्पादों के निर्माण, पैकिंग और तुलनात्मक जानकारी भी दी गई। किसानों को जैविक खाद बनाने का प्रायोगिक प्रशिक्षण भी दिया गया। किसानों ने गोशाला का भी अवलोकन किया। अहिल्या माता गोशाला की ओर से प्रबंधक पवन महिन्द्रे एवं अन्य कार्यकर्ताओं ने कार्यशाला की व्यवस्थाएं संभाली। शुक्रवार को अहिल्या माता गोशाला पर सुबह 10 से सायं 6 बजे तक जैव संसाधन केन्द्र (बीआरसी) द्वारा उत्पादन और बिक्री को लेकर प्रशिक्षण सत्र का अगला चरण आयोजित होगी।