राम बसे हैं रोम-रोम में, कृष्ण भी कण-कण में-पं. शास्त्री

राम बसे हैं रोम-रोम में, कृष्ण भी कण-कण में-पं. शास्त्री

इंदौर, । भगवान का जन्म नहीं, अवतरण होता है। कृष्ण और राम के बिना हमारी संस्कृति अधूरी है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण लीलाधर। राम हर भारतीय के मन में, रोम-रोम में रचे-बसे हैं तो कृष्ण भी भारत भूमि के कण-कण में व्याप्त है। जिस देश में कंकर भी शंकर बन सकता है, उस देश के संस्कारों और अस्मिता पर कभी आंच नहीं आ सकती।

वृंदावन के प्रख्यात भागवत किंकर आचार्य पं. कृष्णकांत शास्त्री ने आज बड़ा गणपति, पीलियाखाल स्थित प्राचीन हंसदास मठ पर आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में राम एवं कृष्ण जन्म प्रसंगों की व्याख्या के दौरान उक्त बातें कही। कथा में आज भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधूम से मनाया गया। कृष्ण जन्म प्रसंग की जीवंत झांकी देखकर भक्त इतने आल्हादित हुए कि “नंद में आनंद भयो जय कन्हैयालाल की”…भजन पर झूम उठे। अनेक बालक भी भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप में सज संवरकर आए थे। कथा स्थल को जन्मोत्सव के लिए विशेष रूप से श्रृंगारित किया गया था। माखन-मिश्री, लड्डू और बिस्किट-चाकलेट का प्रसाद वितरण किया गया। कथा स्थल पर भक्तों का सैलाब दिनोंदिन बढ़ रहा है। कथा शुभारंभ के पूर्व महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सान्निध्य में समाजसेवी पं. कृपाशंकर शुक्ला, पं. महेश शास्त्री, प्रवीण संग्राम शर्मा, श्रीमती वर्षा शर्मा, ज्योति शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

पं. शास्त्री ने कहा कि राम प्रत्येक धर्मनिष्ठ भारतीय के मन में रचे-बसे हैं। भगवान भाव के भूखे होते हैं, प्रभाव के नहीं। उन्हें शबरी और केवट के साथ विदुरानी के हाथों से जूठे बैर एवं भोजन में 56 भोग से ज्यादा तृप्ति मिलती है। भगवान की प्रत्येक लीला में हमारे कल्याण का ही संदेश होता है। उन्हें आत्मसात कर आचरण लाने की जरुरत है। भारत भूमि की अस्मिता और गौरव के प्रतीक इन अवतारों के कारण ही आज भारतीय धर्म संस्कृति की ध्वजा पूरी दुनिया में फहरा रही है।