भागवत रत्नों का महासागर, जितना गहरा उतरेंगे, उतना बड़ा खजाना हाथ लगेगा

भागवत रत्नों का महासागर, जितना गहरा उतरेंगे, उतना बड़ा खजाना हाथ लगेगा

इंदौर, । कलियुग में एक क्षण का सत्संग भी जीवन की दशा और दिशा बदल देता है। भागवत ऐसा महासागर है, जिसमें अनेक रत्नों का भंडार भरा पड़ा है। जितना गहरा उतरेंगे, जीवन को संवारने का उतना बड़ा खजाना इस भंडार में मिल जाएगा। जीवन को सजाने – संवारने के लिए सोने- चांदी और हीरे-पन्ने के आभूषण नहीं, सद्गुणों एवं श्रेष्ठ संस्कारों के गहने चाहिए, जो सत्संग से ही मिलेंगे। भागवत ऐसा कल्प वृक्ष है, जिसकी छाया में भूले से भी चले जाएंगे तो सारे शुभ संकल्प साकार हो उठेंगे।

       ये दिव्य विचार हैं श्रीधाम वृंदावन के भागवत किंकर पं. कृष्णकांत शास्त्री के, जो उन्होने आज बड़ा गणपति पीलियाखाल स्थित प्राचीन हंसदास मठ पर संगीतमय श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में व्यक्त किए। संयोजक पं. पवनदास शर्मा ने बताया कि कथा शुभारंभ के पूर्व मठ परिसर में महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सान्निध्य में भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई,

       विद्वान वक्ता ने कहा कि भागवत सभी शास्त्रों का सार है। यह ऐसा ग्रंथ है, जो हर देश, काल एवं परिस्थित में प्रासंगिक है। यह संशयग्रस्त व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के जीवन में सही मार्ग पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। हमारी श्रद्धा और निष्ठा अखंड रहना चाहिए। भागवत को विद्वानों ने कल्पतरु कहा है, जिसकी छाया में भूल से भी चले जाएंगे तो जीवन का उद्धार हो जाएगा।