दीपावली पर आकर्षक रंगों में सजे गोमय से बने दीपक में आम लोगों की बढ़ी दिलचस्पी
इंदौर । इस बार दीपावली पर गोबर-गोमय से निर्मित दीपों एवं गृह तथा वास्तु के अनुरूप दीपों और अन्य गृह उपयोगी सामान के प्रति आम लोगों में उत्साह देखने को मिल रहा है। शहर के कुछ प्रमुख परंपरागत दीपक निर्माता इन दीपों एवं अन्य वस्तुओं के निर्माण में जुटे हुए हैं। यही नहीं, इंदौर में बने सामान की गुजरात सहित प्रदेश के अनेक पड़ोसी राज्यों में भी इनकी भारी मांग बनी हुई है।
संस्था श्री महाअवतार गोमय शिल्प की संयोजक सरस्वती पेंढारकर एवं अध्यक्ष शिवम परमार ने बताया कि गोबर एवं गोमय से निर्मित दीपों के साथ ही अनेक सुंदर वस्तुएं भी बनाई जा रही है। शहर के माणिक बाग रोड स्थित देवी अहिल्या गौशाला के पास न्यू क्लाथ मार्केट में पिछले दो महीनों से करीब 12 महिलाएं और उनके सहयोगी निरंतर नए वैरायटी के दीपों के निर्माण में जुटे हुए हैं। ग्रामीण अंचलों में भी जब से जैविक खेती का प्रचलन बढ़ा है, तब से ही गोमय से निर्मित वस्तुओं की मांग भी बढ़ने लगी है। इस वर्ष गोमय से बने लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, दीपक, बाजोट, पूजा थाली एवं दीप मालिका की अच्छी मांग बनी हुई है। मूल्य के हिसाब से भी यह काफी सस्ते और मजबूत माने जा रहे हैं। इनके मूल्य की रेंज 3 रुपए से लेकर 9 रुपए प्रति नग तक रखी गई है। इन पर बिना रसायन के किए गए रंग-रोगन से भी इनका स्वरूप काफी आकर्षक बना गया है। शनिग्रह की शांति के लिए नीले रंग का दीपक भी बनाया गया है जो शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे या शनि मंदिर में रखकर आने से लाभ होता है, ऐसा माना गया है। आने वाले दिनों में गोमय से निर्मित कुर्सी-टेबल एवं अन्य फर्नीचर भी बनाने की तैयारियां चल रही है।
उन्होंने बताया कि कुछ लोगों की भ्रांति है कि गोबर से बने दीपक आग पकड़ लेते हैं, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। जिस तरह मिट्टी के दीपक धोकर जलाए जाते हैं, उसी तरह गोमय दीपक भी यदि धोकर जलाएंगे तो यह दीपक न तो तेल पीएंगे और न ही आग पकड़ेंगे। ये दीपक गिरने पर टूटते भी नहीं है। इसीलिए इनको बार-बार उपयोग में लिया जा सकता है। दीपदान के लिए ये दीपक और अधिक उपयोगी हैं, क्योंकि ये पानी में तैरते रहते हैं। इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद आम लोगों में गोमय से निर्मित वस्तुओँ के प्रति रुझान बढ़ा है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि गोमय से बने दीपक घर में सुख-शांति और सौभाग्य तो प्रदान करते ही हैं, प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। इनके नष्ट होने पर खाद के रूप में भी इनका प्रयोग किया जा सकता है।