अहंकार से घिरे व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि वह हर दिन पतन के मार्ग पर बढ़ रहा हैं-साध्वी कृष्णानंद

अहंकार से घिरे व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि वह
हर दिन पतन के मार्ग पर बढ़ रहा हैं-साध्वी कृष्णानंद

इंदौर, । अहंकार एक परिपूर्ण दुर्गुण है। अहंकार से घिरे व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि वह हर दिन, हर पल पतन के मार्ग पर बढ़ रहा है। अहंकार मनुष्य का ऐसा शत्रु है जो उसके सारे सदगुणों को ढंक लेता है। अहंकार कहीं भी, किसी भी रास्ते से आ सकता है। प्रशंसा, पद, पैसा, प्रतिष्ठा,वैभव और अन्य किसी भी कारण से अहंकार घुसपैठ बना लेना है। इतिहास उठाकर देंखे तो अच्छे अच्छे राजा महाराजा भी इसी अहंकार के कारण पतन के शिकार हुए हैं। अहंकार के बाद किसी और दुर्गुण की जरूरत ही नहंी पड़ती।
ये प्रेरक विचार हैं वृंदावन की साध्वी कृष्णानंद के, जो उनहोने गीताभवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ एंव अष्टोत्तर शत भागवत पारायण के दिव्य आयोजन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में रूक्मणी विवाह प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कथा में रूक्मणी विवाह का उत्सव तो इतने उत्साह और जोश से मनाया गया कि गीताभवन सभागृह कुछ समय के लिए विवाह मंडप में बदल गया। भक्तों ने नाचते गाते और झूमते हुए विवाह की खुशियां मनाई। कथा शुभारंभ के पूर्व वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम मोमबत्ती, राजेश बंसल, राजेंद्र समाधान, गणेश गोयल, पवन सिंघल, रामबिलास राठी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। अग्रश्री कपल्स ग्रुप की ओर से स्वाति- राजेश मंगल, शीतल- रवि अग्रवाल, अर्चना- गिरीश अग्रवाल एवं किरण-अतुल बंसल आदि ने अतिथियों की अगवानी की। गीताभवन में पहली बार 108 विद्वान भागवत का मूल पारायण कर रहे हैं । तर्पण के दौरान भागवतजी का पोथी पूजन भी होगा। श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन अनेक परिजन यहां आ कर अपने दिवगंत परिजनों की स्मृति में भागवतजी का पूजन कर रहे थे।

साध्वी कृष्णानदं ने कहा कि हमारी वाणी में माधुर्य होना चाहिए। विनम्रता एवं अपनेपन से किया गया संवाद बहुत से बिगड़े कामों को बना देता है लेकिन कभी कभी वाणी का घाव इतना गहरा होता है कि जीवन भर नहीं भरता। किसी ने कहा है कि बांध रखा है सपेरों ने सापों को यह कह कर कि इंसान ही काफी है इंसान को डसने के लिए। वाणी ही दूसरे के हृदय को छलनी बना सकती है और वाणी ही दूसरो को अपना बना लेती हैं। यदि हमारा व्यवहार अच्छा है तो मन ही मंदिर, आहार अच्छा है तो तन ही मंदिर और विचार अच्छे हैं तो मस्तिष्क ही मंदिर कहा जाता है। हमारा जीवन तभी सार्थक बनेगा जब हम अपनी वाणी का मर्यादित और संयमित उपयोग करें। वाणी से ही किसी के व्यक्तित्व की पहचान होती है।