सनातन धर्म की उपेक्षा होती रही तो नई पीढ़ी को गीता, भागवत और रामायण कौन सुनाएगा- साध्वी कृष्णानंद

सनातन धर्म की उपेक्षा होती रही तो नई पीढ़ी को गीता,
भागवत और रामायण कौन सुनाएगा- साध्वी कृष्णानंद

इंदौर, । भोजन में जहर का उपचार संभव है लेकिन कोई हमारे कानों में ही जहर घोल दे तो उसका ईलाज संभव नहीं है। आज के युग मंे हमारे कान कूड़ा कर्कट से भरे हुए हैं। बच्चों के कानों में कई तरह का जहर उंडेला जा रहा है। यह एक खतरनाक संकेत हैं। हम सनातन धर्म के लोग अपने धर्म के प्रति उदासीन बने हुए है। जो अपनी जड़ों से छुट जाता है, वह पैड़ फिर कभी फल नहीं देगा। सनातन धर्म की इसी तरह उपेक्षा होती रही तो हमारी नई पीढ़ी को गीता, भागवत और रामायण कौन सुनाएगा। हमें अपने कानों को पीकदान नहीं, फूलदान बनाने की जरूरत है।
ये दिव्य विचार हैं वृंदावन की साध्वी और इंदौर की बेटी साध्वी कृष्णानंद के, जो उनहोने आज गीताभवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ एंव अष्टोत्तर शत भागवत पारायण के दिव्य आयोजन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में गोवर्धन पूजा प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए।न कथा शुभारंभ के पूर्व वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, गीतााभवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल,गणेश गोयल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, रामबिलास राठी, मंजू-पवन सिंघल, स्वाति- राजेश मंगल, शीतल- रवि अग्रवाल, अर्चना- गिरीश अग्रवाल एवं शिल्पा -दीपक मंगल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। गीताभवन में पहली बार 108 विद्वान भागवत का मूल पारायण कर रहे हैं। श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन अनेक परिजन यहां आ कर अपने दिवगंत परिजनों की स्मृति में भागवतजी का पूजन कर रहे हैं। आज सांय कथा में गोवर्धन पूजा एवं 56 भोग उत्सव धूमधाम से मनाया गया।

सध्वी कृष्णानंद ने कहा कि भगवान कृष्ण का जन्म तो जेल में हुआ ही, उनके जीवनकाल में भी अनेक संघर्ष आते रहे लेकिन कभी भी उन्होेने हार नहीं मानी। वे कभी निराश भी नहीं हुए। जितने संकट उनके जीवन में आए, उतने शायद ही किसी अवतार के जीवन में आए होंगे। यदि परमात्मा की सच्चे मन से शरण प्राप्त कर लें तो बड़े से बड़े संकट भी दूर हो सकते हैं। भगवान छल कपट से दूर रहने वाले निर्मल मन के भक्तों को ही पसंद करते हैं। हम स्वयं का आत्मावलोकन करें कि क्या हम भगवान के प्रिय हो सकते हैं। आज कल रिश्तें रोटियों की तरह हो गए हैं जो जरासी आंच लगते ही जल भुन कर खाक हो जाते हैं। सुख और आनंद में अंतर हैं। भौतिक संसाधनों सेे हम सुख तो प्राप्त कर सकते हैं, आनंद नहीं। परमात्मा की कृपावृष्टि होने पर ही आनंद मिल सकता है। जीवन में अच्छा सुनने और अच्छा पढ़ने की आदत बना लेंगे तो अच्छा बोलना भी आ जाएगा। मीठी वाणी से बहुत से बिगड़े काम बन जाते हैं। धर्म ग्रंथ हमारे सनातन धर्म की जड़े हैं। इन्हे सहेज कर नर्ह पीढी़ तक पहुंचाने का जिम्मा हमारा है।