जीवन की व्यथाओं को दूर करती हैं भगवान की कथाएं

जीवन की व्यथाओं को दूर करती हैं भगवान की कथाएं


इंदौर,  शरीर की भूख प्यास तो हम दिन मे तीन बार भोजन कर मिटा लेते हैं लेकिन मन की प्यास दूर करने के लिए हमारे पास वक्त ही नहीं है। मन की प्यास सत्संग और भागवत से ही दूर होगी। हमारा मन संसार में तो बिना प्रयास के लग जाता है लेकिन सत्संग के लिए मन को लगाना पड़ता है। परमात्मा ने हमें बहुत कुछ दिया है, फिर भी हम एक के बाद दूसरी फरमाईशे करते रहते हैं। कभी भगवान के प्रति कृतज्ञता का भाव भी व्यक्त करें, भगवान तो अपने मंदिर में भक्तों की पुकार पर दौड़ने के लिए हमेशा खड़े ही रहते हैं, बैठते नहीं। भगवान की कथाएं जीवन की व्यथाओं को दूर करती है।

गीताभवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ एंव अष्टोत्तर शत भागवत पारायण के दिव्य आयोजन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में इंदौर की बेटी साध्वी कृष्णानंद ने आज राम एवं कृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग की व्याख्या के दौरान उक्त प्रेरक बाते कही। कथा शुभारंभ के पूर्व वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल,विधायक आकाश विजयवर्गीय, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, गीताभवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, रामविलास राठी, बालकृष्ण छाबछरिया, गणेश गोयल तथा अग्रश्री कपल्स क्लब की ओर से स्वाति-राजेश मंगल और शीतल-रवि अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन कर भागवतजी की आरती में भाग लिया। गीताभवन में पहली बार इतने विद्वान भागवत का मूल पारायण कर रहे हैं। श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन अनेक परिजन यहां आ कर अपने दिवगंत परिजनों की स्मृति में भागवतजी का पूजन कर रहे हैं। आज सांय कथा में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। नन्हे कृष्ण को टोकनी में मंच पर लाते ही भक्तों में उनके दर्शनो की होड़ मच गई। नंद मे आनंद भयो भजन पर समूचा सभागृह थिरक उठा।
भागवत कथा में राम एवं कृष्ण जन्मोंत्सव प्रसंगों की भावपूर्ण व्याख्या करते हुए साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि कभी इस बात पर चिंतन करें कि राम-कृष्ण और हमारे अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं मंदिर में खड़ी अवस्था में क्यों रहती हैं तो इसका मुख्य कारण यह है कि भगवान अपने भक्त की पुकार सुनते ही दौड़ पडने के लिए तैयार रहते हैं । वे नहीं चाहते कि भक्त पुकारे और हमें खड़ा होने में विलंब हो। दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसे कोई दुख न हो। हम सबके जीवन में व्यथाएं भरी हुई है। हमारी कामनाएं भी कभी खत्म नहीं होती। एक के बाद दूसरी फरमाईश ले कर हम भगवान के पास तो पहुंच जाते हैं लेकिन कभी भगवान के पास जा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भाव क्यों नहीं आता। हमारा मन संसार में बहुत आसानी से लग जाता है लेकिन भक्ति और सत्संग के लिए मन को लगाना पड़ता है। भगवान की कथाएं हमारे जीवन की व्यथाओं को दूर करने वाली है। भगवान केवल मन के ही भूखे हैं, तन और धन ले कर वे क्या करेंगे। हम अपना पवित्र हृदय जिस दिन उनके श्रीचरणो में समर्पित कर देंगे, उस दिन भगवान भी हमारे लिए दौड़े चले आएंगे।