मैथिल समाज का 3 दिवसीय जितिया महाव्रत का पारण के साथ समापन
इंदौर : शहर में रह रही सैकड़ों मैथिल समाज की महिलाओं द्वारा अपने संतानों की लम्बी आयु तथा उन्हें हर तरह के विपत्तियों से मुक्त रखने के लिए किया जाने वाले तीन दिवसीय जितिया पर्व ( महाव्रत) आज पारण के साथ समाप्त हुआ। पारण के साथ व्रती महिलाओं ने अपना 36 घंटे का उपवास का समापन बुधवार शाम पांच बज कर तीस मिनट पारण के साथ किया। जैसे ही पारण का समय आया, महिलाओं ने स्नानादि कर माता जितवाहन का पूजा कर उन्हें और चील एवं सियार के निमित्त भोग लगाया। तत्पश्चात व्रती महिलाओं ने अपने साथ तथा दूर में रह रहे बच्चों को लम्बी आयु, स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया।
तुलसी नगर निवासी शारदा झा जो पिछले 17 सालों से जितिया पर्व का महाव्रत करती हैं, ने पारण के पश्चात अमेरिका के शिकागो में रह रहे अपने पुत्र को वीडियो कॉल के माध्यम से उन्हें लम्बी आयु एवं खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया।
मैथिल समाज की व्रती महिलाओं के घरों में उनके परिजनों द्वारा विभिन्न तरह के व्यंजन बनाए गए थे
मैथिल सामाजिक मंच के वरिष्ठ संरक्षक के के झा, मैथिल सामाजिक मंच इंदौर के अध्यक्ष उदय कांत ठाकुर, महासचिव मुकेश झा ने कहा कि 36 घंटे का निर्जला उपवास जो मंगलवार सुबह तीन बज कर 15 मिनट पर शुरू हुआ उसका समापन बुधवार शाम 5 बज कर 30 मिनट पर पारण के साथ किया गया। जितिया उपवास से एक दिन पूर्व सोमवार को नहाय खाय खरना का आयोजन हुआ जिसमें व्रती महिलाएं मरुवा का रोटी, झिमुनि (तुरई ) की सब्जी तथा नोनी का साग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया।मैथिल सामाजिक मंच ने खरना हेतु व्रती महिलाओं के घर मरुआ का आटा एवं झिमनी का पत्ता व्रती महिलाओं के घरों में मिथिला रीति रिवाज के साथ खरना का सम्पादन करने के लिए पहुँचाया गया।
मिथिला पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान के दीर्घायु, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत रखकर भगवान की पूजा और प्रार्थना करती हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण अगले दिन यानी नवमी तिथि को किया जाता है. यह व्रत प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह व्रत महाभारत काल से ही होता चला आ रहा है। खासकर यह मिथिला में बहुत ही प्रसिद्ध है जिसे महिलाएं बहुत ही नियम निष्ठा के साथ करती है। एक तरह से यह व्रत कठोर तपस्या के बराबर है। जितिया व्रत के दौरान व्रती महिलाओं द्वारा जीमूतवाहन की कथा सुनी जाती है. इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी।