भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और त्याग का समन्वय है भागवत कथा

भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और त्याग का समन्वय है भागवत कथा


नक्षत्र सभागृह में ब्रम्हलीन अयोध्यादेवी-शंकरदयाल विजयवर्गीय की स्मृति में भागवत ज्ञान यज्ञ का समापन

इंदौर, । भागवत भक्ति, ज्ञान, वैराग्य एवं त्याग के समन्वय का विलक्षण ग्रंथ है। इसकी रचना भगवान श्रीकृष्ण को केंद्र में रख कर की गई है। भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त से त्याग- इन चारों अलंकरणों से मनुष्य को संवारने के लिए ही वेदव्यास ने इसका सृजन किया है।  जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है। स्वयं भगवान कृष्ण के जन्म से ले कर अंत तक संघर्ष ही संघर्ष बना रहा। जब भगवान के जीवन में भी संघर्ष आते रहे तो हम तो साधारण मनुष्य है। हमें भी कृष्ण की तरह मुस्कराते हुए इन संघर्षों का सामना करने की प्रेरणा भागवत से मिलती है। बिना संघर्ष के चलने वाला जीवन मजबूत और सार्थक नहीं होता। जीवन जीना कोई आसान नहीं होता, बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता, जब तक न पड़े हथोड़े की चोंट, कोई पत्थर भी तब तक भगवान नहीं होता।
ये दिव्य विचार हैं श्रीधाम वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के, जो उन्होने आज स्कीम 54 स्थित ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर ‘नक्षत्र’ की दूसरी मंजिल पर ब्रम्हलीन श्रीमती अयोध्यादेवी एवं शंकर दयाल विजयवर्गीय की पावन स्मृति में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ में  कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग की भावपूर्ण व्याख्या एवं समापन प्रसंग पर व्यक्त किए।  कथा में आज कृष्ण सुदामा मैत्री का  जीववंत उत्सव भी सौल्लास मनाया गया। इस आत्मीय और भावुकता से भरे प्रसंग को देखकर अनेक भक्तों की आंखे छलछला उठी। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में मालवांचल के अनेक साधु-संत भी आए थे । कथा शुभारंभ के पूर्व  विधायक रमेश मैंदोला, गणेश गोयल, राजकपूर सुनहरे, दिलीप मिश्रा, विजय मित्तल, दिलीप सोलंकी, गोविंद गर्ग भमोरी, सुरेंद्र सिंह सेंगर, श्याम मोमबत्ती, अजय गोयल आदि ने यजमान परिवार के साथ व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में  प्रमुख यजमान  कैलाश विजयवर्गीय, वरिष्ठ समाजसेवी विनोद अग्रवाल, टीकमचंद्र गर्ग, प्रेमचंद्र गोयल, गिरिश मतलानी, ओमप्रकाश वाधवानी, पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे, विधायक रमेश मैंदोला, गणेश गोयल, अनिल राठी, सुरेंद्र संघवी, सहित बड़ी संख्या में भक्तों ने भाग लिया।अतिथियों की अगवानी आकाश-सोनल विजयवर्गीय, विजय-मंजू विजयवर्गीय, सचिन विजयवर्गीय आदि ने की। संतश्री के साथ पधारी साध्वी कृष्णानंद ने आज भी अपने मनोहारी भजनों के जादू से भक्तों को मंत्रमुग्ध बनाए रखा।

महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि भगवान कृष्ण का जन्म जेल में हुआ और जन्म से ले कर नामकरण, विवाह, प्रथम पुत्र के जन्म और अन्य सभी प्रसंगों पर संघर्षों का सामना करना पड़ा। उन्होने संघर्षों को मुस्कराते हुए जिया। बिना संघर्ष के जो जीवन होता है, उसमें मजबूती नहीं होती। हमारी कामनाएं संसार से अभिप्रेत होती है, जिन्हे परमात्मा से प्रेरित होना चाहिए। धन कमाना बुरी बात नहीं है लेकिन यदि धन का दुरूपयोग किया तो वहीं धन हमारे दुख का कारण बन जाएगा। धन किसे बुरा लगता है, धन आना भी चाहिए लेकिन धन का शोधन भी जरूरी है। यदि हमने धन का शोधन नहीं किया तो ऐसा धन घर मंे कुमती का कारण बन जाता है। समाज अच्छाई को भूल कर बुराईयों को पहले याद रखता है। जब भगवान की अच्छाईयां भी हम भुला देते हैं तो हमारी अच्छाईया भी समाज याद नहीं रखेगा। लेकिन ऐसी प्रवृत्ति से डर कर हमें अच्छाई को छोड़ने की जरूरत नहीं है। भगवान ने हमें सदकर्माे के लिए ही जन्म दिया है। भागवत के माध्यम से हम अपने जीवन में जितने श्रेष्ठ अलंकरण ला सकते हैं, लाने की कोशिश करते रहना चाहिए। कथा में हम जिस तरह सात दिन बैठे हैं, उसी तरह कथा को भी अपने अंदर बिठाने का प्रयास करें।