मानव को महामानव की ओर प्रवृत्त करती है भागवत -भास्करानंदजी
इंदौर, । हमें पृथ्वी पर मनुष्य जन्म तो भगवान की कृपा से मिल गया है, लेकिन मानव को महामानव बनाने की सीख भागवत जैसे ग्रंथ से ही मिलती है। धर्म की प्रधानता व्यक्ति को परिपूर्णता की ओर ले जाती है। जब हम संसार से जाएं तो अपने साथ अपने शुभ एवं श्रेष्ठ कर्मों को भी ले कर जाएं। हमारा सारा धन-वैभव यहीं धरा रह जाता है और साथ जाते है तो केवल हमारे सदकर्म। धर्म की रक्षा के लिए बोला गया झूठ झूठ नहीं होता। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। कंस और रावण भी अंहकार के कारण ही पतन के रास्ते पर चले गए। अहंकार देवताओं में भी आ जाए तो देवराज इंद्र की तरह उन्हे भी नीचे गिरना ही पड़ता है।
ये दिव्य विचार हैं श्रीधाम वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के, जो उन्होने आज स्कीम 54 स्थित ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर ‘नक्षत्र’ की दूसरी मंजिल पर ब्रम्हलीन श्रीमती अयोध्यादेवी एवं शंकर दयाल विजयवर्गीय की पावन स्मृति में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ में गोवर्धन पूजा की पृष्ठ भूमि एवं कृष्ण रूक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। कथा में आज रूक्मणी विवाह का उत्सव भी सौल्लास मनाया गया। जैसे ही कृष्ण और रूक्मणी ने एक दूजे को वरमाला पहनाई, समूचा सभागृह बधाई गीतों और जयघोष से गूंज उठा। कृष्ण और रूक्मणी की एक झलक पाने के लिए भक्तों में होड़ मच गई। कुछ समय के लिए तो लगा कि नक्षत्र के इस सभागृह में वृंदावन उतर आया है। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में मालवांचल के अनेक साधु-संत भी आ रहे हैं। कथा शुभारंभ के पूर्व यजमान परिवार के प्रमुख कैलाश विजयवर्गीय, समाजसेवी विष्णु बिंदल, प्रेमचंद गोयल, भरत मोदी, गणेश गोयल, नारायण अग्रवाल, पूर्व पार्षद चंदू शिंदे, सुजान शेखावत, रेणु शर्मा, गोविंद गर्ग भमोरी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में यजमान परिवार के मंजू- विजय विजयवर्गीय, श्याम मोम्बत्ती, राजेंद्र अग्रवाल, बालमकुंद सोनी, प्रदीप जोशी, विजयेंद्र परिहार सहित बड़ी संख्या में भक्तों ने भाग लिया। संतश्री के साथ पधारी साध्वी कृष्णानंद पहले दिन से ही अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को मंत्रमुग्ध बनाए हुए है। बुधवार 29 सिंतबर को सुदामा चरित्र प्रसंग की कथा एवं उत्सव होंगे। कथा दोपहर 4 से सांय 7 बजे तक होगी। भक्तों से कोरोना प्रोटोकाॅल का पालन करते हुए कथा का पुण्य लाभ उठाने का आग्रह किया गया है।
महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि जब हम पहाड़ पर चढ़ते हैं तो झुकना पड़ता है लेकिन उतरते समय अकड़ आ जाती है। यह अकड़ ही अहंकार की सूचक है। व्यक्ति को कहीं कोई पद या धन संपत्ति प्राप्त हो जाती हैं तो अहंकार उसे घेर लेता है। छत को तभी तक अपनी ऊचाई का अहंकार रहता है, जब तक उसके ऊपर एक और मंजिल नहीं बन जाती। दुनिया में सारा झगड़ा स्वयं को बड़ा समझने का ही है। हर कोई स्वयं को बड़ा मानने लगता है लेकिन जब उनसे भी बड़ा व्यक्ति आ जाता है तो ऐसे सभी बड़े भी छोटे बन जाते हैं। यदि संसार में सारे ही लोग बड़े बन जाएंगे तो यह सृष्टि कैसे चल पाएगी। इंद्र को अहंकार को तोड़ने के लिए ही भगवान ने गोवर्धन पूजा की लीला की। रूक्मणी मंगल का प्रसंग भी भगवान की करूणा और नारी के प्रति सम्मान का सूचक है। भारतीय समाज में विवाह सात जन्मों के लिए होते हैं, पश्चिम में तो सात दिनों की भी गारंटी नहीं होती। भारतीय समाज मर्यादाओं में जीता है। यहीं हमारी सबसे बड़ी विशेषता है