नई पीढी को कानों में घुलने वाले जहर से बचाएं-भास्करानंदजी

नई पीढी को कानों में घुलने वाले जहर से बचाएं-भास्करानंदजी

इंदौर, । हमारे धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में जितनी भी बातें हैं, वे सब मानव मात्र के लिए कल्याणकारी है लेकिन विडंबना है कि हम सनातन धर्मी धीरे धीरे अपने शास्त्रों से दूर होते जा रहे हैं। अन्य धर्मावलंबी जहां अपने धर्म के प्रति आस्था-श्रद्धावान बने हुए हैं, वहीं सनातन धर्मी अपने धर्म के मामलों में कुछ सोचते ही नहीं। यही सब चलता रहा तो हमारी आने वाली पीढि़यों को गीता, भागवत और रामायण जैसे ग्रंथों से कौन मिलवाएगा। भोजन में मिले जहर का उपचार तो संभव है लेकिन कानों में घुलने वाले जहर से हमारी नई पीढी को बचाने की चुनौती हमारे सामने है। हमारे अंदर बैठे अहंकार रूपी कंस को जब तक हम मारेगे नहीं, कृष्ण के दर्शन नहीं होंगे। जहां कंस है, वहां कृष्ण कैसे रहेंगे। भक्ति रूपी तिजोरी को सुरक्षित रखने का नाम ही सत्संग है।
श्रीधाम वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने आज स्कीम 54 स्थित ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर ‘नक्षत्र’ की दूसरी मंजिल पर ब्रम्हलीन श्रीमती अयोध्यादेवी एवं शंकर दयाल विजयवर्गीय की पावन स्मृति में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ में  उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में आज गोवर्धन पूजा का उत्सव भी मनाया गया। नन्हे कृष्ण और बाल ग्वाल ने गोवर्धन पर्वत की झांकी सजाई थी। भगवान गिरिराज को 56 भोग भी लगाए गए। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में मालवांचल के अनेक साधु-संत भी आ रहे हैं। मधुराष्टक से कथा शुभारंभ के बाद  यजमान परिवार की ओर से विजय-मंजू विजयवर्गीय , सचिन विजयवर्गीय,विधायक रमेश मैंदोला, अभिषेक बबलू शर्मा, गणेश-किरण गोयल, राजेंद्र-मंजू अग्रवाल, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, सविता हरिशंकर पटेल, सरोज चैहान, सतपाल खालसा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में यजमान परिवार के आकाश-सोनल विजयवर्गीय, कमल चैहान, बालमुकुंद सोनी, राधा राठौर, छाया सक्सेना, प्रदीप जोशी, दिनेश रोकड़े, विजयेंद्र सिंह परिहार एवं धनसिंह डांगी आदि ने भाग लिया। संतश्री के साथ पधारी साध्वी कृष्णानंद पहले दिन से ही अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को मंत्रमुग्ध बनाए हुए है। मंगलावार 28 सितंबर को रूक्मणी विवाह तथा 29 सिंतबर बुधवार को सुदामा चरित्र प्रसंग की कथा एवं उत्सव होंगे। कथा प्रतिदिन दोपहर 4 से सांय 7 बजे तक होगी। भक्तों से कोरोना प्रोटोकाॅल का पालन करते हुए कथा का पुण्य लाभ उठाने का आग्रह किया गया है।

महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि हम सबके जीवन में प्रतिदिन छोटी मोटी खुशियां आती रहती हैं लेकिन जिस दिन परमसत्ता के प्राकटय का आनंद मिल जाएगा, उसके बाद और किसी खुशी की जरूरत ही नहीं रहेगी। भगवान जब जब जहां जहां आते हैं, आनंद ही आनंद की वर्षा करते हैं। परमात्मा संपूर्ण आनंद प्रदान करते हैं। नदी, नाले, तालाब, कुए और पोखर का पानी सूखता रहता है लेकिन सागर का पानी कभी नहीं सूखता। परमात्मा परमानंद के सागर है। परमात्मा कहीं और नहीं, काशी मथुरा और अयोध्या में भी नहंी बल्कि हमारे अंदर ही विराजमान है। यदि हमें उनके दर्शन करना है तो अवगुणों के रूप में अंदर बैठे कंस को मारना होगा। जहां कंस होगा वहां कृष्ण नहीं रह सकते। मथुरा भी तभी मोक्षदायी नगरी बनी, जब कंस का नाश हो गया। हम भी यदि अपने मन को अहंकार रूपी कंस से मुक्त करा लेंगे तो कृष्ण भी टोकनी में बैठ कर हमारे दरवाजे पर पहुंच जाएंगे।