जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति के लिए भागवत का आश्रय जरूरी

जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति के लिए भागवत का आश्रय जरूरी

इंदौर, । भागवत श्रद्धा और आस्था के साथ सुना जाने वाला ग्रंथ है। जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति चाहिए तो भागवत का आश्रय जरूर लेना चाहिए। भागवत औषधि भी है और दीपक भी। संसार की चकाचौंध और सूर्य की रोशनी से बाहर तो उजाला हो सकता है लेकिन अंतर्मन के अज्ञान के अंधकार को भागवत के दीपक से ही रोशन किया जा सकता है। विद्वानों के पास जाने से शब्दों के खेल का मनोरंजन हो सकता है लेकिन संतो के पास जाएंगे तो प्रेम और भक्ति से सराबोर हो जाएंगे। भागवत श्रवण से पाप की प्रवृत्ति खत्म हो सकती है।
ये प्रेरक विचार हैं श्रीधाम वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के, जो उन्होने आज स्कीम 54 स्थित ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर ‘नक्षत्र’ की दूसरी मंजिल पर ब्रम्हलीन श्रीमती अयोध्यादेवी एवं शंकर दयाल विजयवर्गीय की पावन स्मृति में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ में व्यक्त किए। कथा श्रवण के लिए मालवांचल के अनेक साधु-संत भी प्रतिदिन आ रहे हैं। प्रारंभ में यजमान परिवार के आकाश-सोनल विजयवर्गीय, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, विधायक रमेश मैंदोला, विजय मित्तल, गणेश गोयल, पूर्व पार्षद मुन्नालाल यादव, संजय चौधरी, अजय गोयल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। समापन अवसर पर आरती में यजमान परिवार के कैलाश-आशा विजयवर्गीय, अरूण गोयल मामा, विजय पांडे, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, सुरेश कुरवाड़े, सुधीर कोल्हे आदि ने भाग लिया। संतश्री के साथ पधारी साध्वी कृष्णानंद ने आज भी अपने मनोहारी भजनों से भक्तों को मंत्रमुग्ध बनाए रखा। कथा प्रतिदिन दोपहर 4 से सांय 7 बजे तक होगी। भक्तों से कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए कथा का पुण्य लाभ उठाने का आग्रह किया गया है।
विद्वान वक्ता महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद कहा कि कथा हमारे अंतर्मन में तभी प्रवेश करेगी, जब हमारे अंदर श्रद्धा होगी। श्राद्ध पक्ष में विजयवर्गीय परिवार द्वारा ब्रम्हलीन अयोध्यादेवी एवं शंकरदयाल विजयवर्गीय की पावन स्मृति में भागवत ज्ञानयज्ञ का यह अनुकरणीय आयोजन हो रहा है। जन्म जन्मांतर के भटकाव से बचना है तो भागवत का आश्रय जरूर लेना चाहिए। कलयुग में व्यक्ति स्वयं को बहुत ज्यादा बुद्धिमान मानता है। बच्चे भी बुजुर्गो को कुछ नहीं समझते। सूर्य ग्रहण का पता लगाने के लिए विज्ञान को करोड़ो रू. की मशीने लगाना पड़ती है, वहीं जानकारी 80 रू. के भारतीय पंचाग से मिल सकती है। आज हम पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं। हमने कभी वेदों के दर्शन भी नहीं किए होंगे, पढ़ना और समझना तो दूर की बात है। चारों वेदों, पुराणों और महाभारत के बाद भी जब वेद व्यास को संतुष्टि नहीं हुई तो वे नारद के पास पहुंचे। नारद ने उन्हें कहा कि आपने लिखा तो बहुत पर उनमें परिवारों की ही चर्चा है। अब कुछ ऐसा लिखो जिसमें परमात्मा की चर्चा हो और तब वेद व्यास ने भागवत की रचना की। व्यक्ति भय से नहीं, प्रेम से ही धर्म, दान और पूण्य की ओर बढ़ेगा। भागवत वह ग्रंथ है जो व्यक्ति को पाप नहीं करने के बजाय पाप की प्रवृत्ति को छोड़ने की ओर प्रवृत्त करता है। व्यक्ति प्रेम और भक्ति से सरोबार होगा तो पापकर्म की प्रवृत्ति से भी दूर रहेगा।