अपने प्रत्येक कर्म को योग बनाएं-सुधांशुजी
इंदौर, । मनुष्य हर पल अपने चेहरे पर एक मुखौटा पहने रहता है। इसी को व्यक्तित्व भी कहा जाने लगा है। हम सब कभी निराशा और कभी क्रोध तो कभी कुछ और तरह के मुखौटे पहन लेते हैं जिनसे हमारा वास्तविक क्षेत्र लुप्त हो जाता है। भगवान कृष्ण ने कहा है अपने प्रत्येक कर्म को योग बनाएं। हम किस भाव से योग कर रहे हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है। हमारा कर्म अपने स्वार्थ के लिए है या परमार्थ के लिए अथवा भगवान के लिए, यह चिंतन भी जरूरी है।
ये प्रेरक विचार हैं प्रख्यात संत सुधांशुजी महाराज के, जो उन्होंने आज विश्व जागृति मिशन इंदौर मंडल के तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय ऑनलाईन भक्ति सत्संग के दौरान व्यक्त किए। मंडल के इंदौर प्रमुख कृष्णमुरारी शर्मा ने बताया कि इंदौर मंडल की ओर से राजेश-राजकुमारी विजयवर्गीय, किशोर-मेघा गुप्ता, शोभाराम-आशालता डाबर, गोविंदराम- गीता संगतानी, आसनदास-भारती ममनानी, एलआर-रेखा शर्मा एवं लक्ष्मीनारायण-गीता बरूआ यजमान थे। आज भी 3500 से अधिक परिवारों ने इस सत्संग के श्रवण का लाभ उठाया। यह सत्संग प्रतिदिन सुबह 8 से 9 बजे तक दिशा टीवी चैनल, यू ट्यूब एवं फेसबुक पर दुनिया के 156 देशों में प्रसारित किया जा रहा है।
आचार्यश्री सुधांशुजी ने कहा कि जब चित्त ध्यान में जाता है, तब एक योगी का और जब घर में आए तो प्रेम की प्रतिमूर्ति का और संसार में रहे तो एक कर्मयोगी का रूप होना चाहिए। आंतरिक रूप से हम सब एक आध्यात्मिक चित्त वाले व्यक्ति हैं। शरीर, मन, प्राण इन सबका संपूर्ण रूप से रूपातंरण हो जाए और हम दुनिया के प्रत्येक कर्म को योग मान कर जीना शुरू कर दे ंतो हम भी कर्मयोगी हो सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम किस भाव से योग कर रहे हैं। अर्थात हम अपना योग भगवान के लिए कर रहे हैं या स्वयं अपने मतलब के लिए । हम पैसा कमाते समय कितने लोगों को नीचे गिरते हैं और कितने को उपर उठाते हैं, हमारा भाव परमात्मा के लिए है या अपने अहंकार के लिए-भाव यहीं होना चाहिए कि मैं भी उपर उठूं और दूसरों को भी उठाऊ। हर क्षण हम परमात्मा की कृपा का अनुभव करें और सोंचे कि इसी से मुझे उर्जा मिलेगी। जब हमारा मन महसूस करने लगे कि यह भोजन हमें शक्ति और सामर्थ दे रहा है तो भोजन भी भक्ति बन जाएगा। सत्संग में डॉ. आर्चिका दीदी ने भी संबोधित किया।