अपनी मुस्कराहट की संपदा को निरंतर बढ़ाए – आचार्य सुधांशुजी

अपनी मुस्कराहट की संपदा को निरंतर बढ़ाएं

विश्व जागृति मिशन इंदौर मंडल की मेजबानी में आचार्य सुधांशुजी महाराज के प्रवचन

इंदौर, । संसार की हर चीज अनित्य है, नित्य तो केवल आत्मा और परमात्मा ही है। हर संयोग एक दिन वियोग में बदलता है। सुख और दुख हमेशा नहीं रहते। जीवन की यही सच्चाई है। इस स्थिति में हमें संतुलन साधना सीखना होगा। हमारा अधिकांश जीवन इसी संतुलन को बनाने में ही खर्च हो जाता है। यादों की तस्वीरों पर वक्त की धूल धीरे-धीरे जमकर उसे धुंधला कर देती है। व्यक्ति को उग्रता, व्यग्रता और समता के बीच संतुलन बनाना चाहिए। भगवान कृष्ण भी कहते हैं – चिंता करने से कुछ नहीं होगा, अपनी मुस्कराहट की संपदा को निरंतर बढ़ाएं क्योंकि हम नहीं जानते कि हमारी मुस्कान में कितनी शक्ति है।
ये दिव्य एवं प्रेरक विचार हैं प्रख्यात संत सुधांशुजी महाराज के, जो उन्होंने विश्व जागृति मिशन इंदौर मंडल के तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय ऑनलाईन भक्ति सत्संग के दौरान व्यक्त किए। मंडल के इंदौर प्रमुख कृष्णमुरारी शर्मा ने बताया कि आज भी करीब 3500 परिवारों ने इस सत्संग के श्रवण का लाभ उठाया। यह सत्संग प्रतिदिन सुबह 8 से 9 बजे तक दिशा टीवी चैनल, यू ट्यूब एवं फेसबुक पर दुनिया के 156 देशों में प्रसारित किया जा रहा है।
आचार्यश्री ने कहा कि सुख एवं दुख इंद्रियों के संयोग से उत्पन्न होने वाले प्रभाव हैं, जिनका आरंभ भी है और अंत भी है। ये सब परिवर्तनशील हैं। संसार की हर एक वस्तु के साथ हर पल एक नियम काम कर रहा है। हर पल, प्रतिपल दुनिया विकृति की ओर जा रही है। सुख-दुख हमें विचलित तो करते हैं पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिस तरह मौसम में बदलाव के प्रभाव को हम लोग बर्दाश्त करते हैं, वैसे ही सुख-दुख को सहन करना भी हमें सीखना चाहिए। जीवन में संतुलन और सहनशीलता बहुत जरूरी है। जीवन का आनंद संतुलित रहने में हैं और यह आनंद तभी आएगा जब हम बर्दाश्त करना सीख लेंगे। सुख-दुख को ठीक करने की कितनी ही चेष्टाएं कर लें, प्रभाव तो पड़ेगा ही। पूर्णत्व की यात्रा मंे यह जरूरी भी है। मृत्यु होने पर लोग कहते हैं – यह पूरा हो गया। असल में कोई भी पूरा नहीं होता। मरने के बाद भी कई इच्छाएं और काम अधूरे रह जाते हैं। नदी सागर में मिलने के बाद ही सागर बन पाती है। श्मशान घाट के बाहर लिखा होता है – मंजिल तो तेरी यही थी, देर कर दी आते आते, क्या मिला तुझे इस दुनिया से, अपनों ने ही जला दिया जाते-जाते। जीते जी तो हर दिन थोड़ा थोड़ा जलाते थे, अब मरने पर पूरा ही जला दिया। जब बाहर से बैचेन हों, तब उग्रता होती है और जब अंदर से बैचेन हों तो व्यग्रता होती है। इन दोनों को साध लिया जाए तो आती है समता। समता से ही शांति मिलेगी। तिनके जैसे दुख को पहाड़ जैसा समझने वाले लोगों में आत्मबल कम होता है और जो पहाड़ जैसी समस्या को तिनके जैसी समझते हैं उनका आत्मबल मजबूत होता है। बारात की घोड़ी की तरह कई बार माता-पिता को बच्चों के सामने नाचना पड़ता है, तब कहीं जाकर वे आगे बढ़ पाते हैं। जीवन में इस तरह के हालात अक्सर बनते रहते हैं। हमारे घोषित नाम के अलावा समाज में कई दूसरे नाम भी प्रचलित होते हैं। पीठ पीछे लोग हमें इन्हीं नामों से पुकारते हैं। कृष्ण का आदेश है हरेक युद्ध के बाद भी समझौते की टेबल पर बैठना पड़ता है। आसमान से उठती हुई आवाज को हृदय में उतारें और पहचाने कि हमारी मुस्कराहट किस तरह खुशबू फैलाती है। जैसे अच्छा वक्त गुजर जाता है वैसे ही बुरा वक्त भी गुजर जाएगा। स्वयं मंे शांति और सुकून महसूस करें, अपनी आत्मशक्ति को पहचानें और बर्दाश्त करना सीखें।