कृष्ण-सुदामा जैसे मैत्री भाव की आज पूरे विश्व को जरूरत

कृष्ण-सुदामा जैसे मैत्री भाव की आज पूरे विश्व को जरूरत

इन्दौर, । यह भारत भूमि का ही पुण्य प्रताप है कि यहां कृष्ण जैसे राजा और सुदामा जैसे स्वाभिमानी ब्राह्मण हुए। कलियुग में मित्रता को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को अपने बाल सखाओं के दुख-दर्द में भागीदार बनने का संदेश भी इस प्रसंग से मिलता है। कृष्ण और सुदामा की मित्रता पूरी दुनिया में अनूठा उदाहरण है। मित्रता के नाम पर स्वार्थ और मोह-माया से बंधे रिश्ते ज्यादा दिनों तक नहीं चलते। कृष्ण-सुदामा जैसा मैत्री भाव आज पूरे विश्व की जरूरत है।
भागवताचार्य पं. हर्ष शर्मा ने श्री सनाढ्य सभा के तत्वावधान में जूनी इंदौर चंद्रभागा स्थित राधा-कृष्ण मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ में कृष्ण-सुदामा मिलन प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। समापन अवसर पर कृष्ण-सुदामा मिलन का भावपूर्ण मंचन तो हुआ ही, मयूर नृत्य एवं राधा-कृष्ण नृत्य ने भी भक्तों का मन मोह लिया। भक्तों ने नाचते-गाते हुए इन उत्सवों का आत्मसात किया। प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन पं. देवेंद्र शर्मा, पं. संजय जारोलिया, भगवती शर्मा, प्रकाश पचौरी, एवं विशाल शर्मा आदि ने किया। कथा में संगीतमय भजनों पर भक्तों का नृत्य भी पहले दिन से ही आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।  अध्यक्ष पं. देवेंद्र शर्मा एवं महासचिव पं. संजय जारोलिया ने बताया समापन अवसर पर आचार्य पं. हर्ष शर्मा का सम्मान किया गया।
पं. शर्मा ने कहा कि जिस दिन आज के राजा भी अपने महलों के दरवाजे सुदामा जैसे आम आदमी के लिए खोल देंगे, उस दिन देश में फिर कृष्णयुग और वास्तविक प्रजातंत्र लौट सकता है। भागवत एक ऐसा ग्रंथ है जो बार बार श्रवण के बाद भी नित्य नूतन अनुभूति प्रदान करता है। जितनी बार सुनों, उतनी बार नया। दुनिया का और कोई ग्रंथ ऐसा नहीं है जो बार बार सुना जाए। जन्म जन्मांतर के पापों का क्षय करने के लिए यदि भूल से भी भागवत का कोई मंत्र सुन लिया जाए तो उसका पुण्य अवश्य मिलता है। यह वह कल्पवृक्ष है जिसकी छाया में पहुंचने पर हर शुभ संकल्प साकार हो जाता है।