हमारी भक्ति अडिग और अखंड रहेगी तो भगवान को रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा

हमारी भक्ति अडिग और अखंड रहेगी तो
भगवान को रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा

इन्दौर, । भगवान का अवतरण भक्तों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए हुआ है। उनकी लीलाओं में प्राणीमात्र के प्रति सदभाव और कल्याण का चिंतन होता है। संसार की दृष्टि से भगवान की लीलाओं का चाहे जो अर्थ-अनर्थ निकाला जाए, यह शाश्वत सत्य है कि यदि हमारी भक्ति अडिग और अखंड रहेगी तो भगवान को रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा। भक्ति निष्काम और निर्दोष होना चाहिए। भक्ति मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है।

भागवताचार्य पं. हर्ष शर्मा ने आज श्री सनाढ्य सभा के तत्वावधान में जूनी इंदौर चंद्रभागा स्थित राधा-कृष्ण मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ में गोवर्धन लीला प्रसंग के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में गोवर्धन लीला की झांकी सजाकर जीवंत उत्सव भी मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व पं. देवेंद्र शर्मा, पं. संजय जारोलिया, भगवती शर्मा, राकेश शर्मा, मनोज तिवारी, कमल शर्मा, बब्बन शर्मा, महेश शर्मा, योगेश बिरथरे, रानी जारोलिया, सुनील बिरथरे, राधेश्याम बिरथरे, बालकृष्ण शर्मा, श्यामलाल कटारे, अनिल शर्मा, सत्यप्रकाश शर्मा, हेमंत शर्मा, विशाल शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आज के यजमान कमल-नीतू शर्मा एवं रूपेश-ममता शर्मा के साथ महिला मंडल की ओर से उषा जोशी, घनिष्ठा शर्मा, पूर्णिमा शर्मा, ममता उपमन्यु, सीमा शर्मा, डॉ. रीता उपमन्यु, सुनीता शर्मा, रानू शर्मा, ज्योति जारोलिया, नेहा कंधौवा, नीति दुबोलिया, सुधा शर्मा, पिंकी उपमन्यु, नीतू शर्मा, ऋतु शर्मा, अंजू बिरथरे आदि ने भागवतजी की पूजा की। कथा में संगीतमय भजनों पर भक्तों का नृत्य भी प्रतिदिन आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अध्यक्ष पं. देवेंद्र शर्मा एवं महासचिव पं. संजय जारोलिया ने बताया कथा 20 सितंबर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से 5 बजे तक चंद्रभागा जूनी इंदौर स्थित राधाकृष्ण मंदिर पर होगी। कोरोना प्रोटोकाल का पालन करना सभी भक्तों के लिए अनिवार्य रखा गया है। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार रविवार 19 सितंबर को रूक्मणी विवाह एवं 20 सितंबर को सुदामा चरित्र के साथ समापन होगा।
भागवताचार्य पं. शर्मा ने कहा कि भगवान की भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। कृष्ण की बाल लीलाएं पूतना वध से शुरू होकर कंस वध तक जारी रही और सब में भक्तों के कल्याण का ही भाव है। बृज की भूमि आज भी भगवान की लीलाओं की साक्षी है जहां हजारों वर्ष बाद भी गोपीगीत, महारास और कालियादेह नाग के मर्दन के जीवंत उदाहरण मौजूद है। हमारी संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं है। जितने प्रसंग हमारे धर्मशास्त्रों में बताए गए है, उन सबके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं। यह भारत भूमि का ही चमत्कार है कि यहां सबसे ज्यादा देवी – देवता अवतार लेते है। भक्तों की भी यही भूमि है और लीलाओं का अलौकिक मंचन भी भारत की पुण्यधरा पर ही होता है।