समाज से धर्म हट गया तो समाज की सत्ता और
उपयोगिता खत्म हो जाएगी- साध्वी परमानंदा

इंदौर, .  जिस तरह स्वर्ण से बने गहनों में से सोना हटा लिया जाए तो उसकी कोई कीमत नहीं रह जाती है, इसी तरह यदि समाज से धर्म हटा लिया जाए तो समाज की सत्ता और उपयोगिता खत्म हो जाएगी। धर्म हमें कर्तव्य का बोध कराता है। महापुरूषों के आचरण और उनकी वाणी को देख-सुन कर लोग धर्म की राह पर चलते हैं। बाबा बालमुकुंदजी ने गीता भवन की स्थापना कर समाज को एक ऐसा तीर्थ स्थल दिया है, जहां से मानव मात्र को अपने जीवन की सही दिशा और लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। अनीति के रास्ते पर चलने से धर्म ही हमें रोकता है।
गीता भवन के संस्थापक बाबा बालमुकंुदजी की 39 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर गोधरा की साधवी परमानंदा सरस्वती ने आज उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। समाजसेवी टीकमचंद गर्ग मुख्य अतिथि थे। प्रारंभ में गीताभवन सत्संग सभागृह में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल मंत्री राम ऐरन, रामविलास राठी, सोमनाथ कोहली, महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, मनोहर बाहेती, प्रेमचंद गोयल, हरीश जाजू आदि ने अतिथियों के साथ बाबा बालमुकुंद के चित्र पर पुष्पांजलि समर्पित की। गीता भवन के भक्तों ने भी मास्क एवं सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए कतारबद्ध हो कर  उनके चित्र पर पुष्प समर्पित किए। साध्वी परमानंदा सरस्वती के प्रवचनों के बाद सभी उपस्थित स्नेहीजन एवं अतिथि गीता भवन के पीछे स्थित बाबाजी की समाधि पर पहुंचे और पुष्पांजलि समर्पित की। संचालन महेशचंद्र शास्त्री ने किया और आभार माना मंत्री राम ऐरन ने।
साध्वी परमानंदा सरस्वती ने बाबाजी का पुण्य स्मरण करते हुए कहा कि केवल पुस्तकें पढ़ लेने अथवा साधु का वेश धर लेने से ही हम धार्मिक नहीं हो जाते । बाबा बालमुकुंद ने एक गृहस्थ  होते हुए भी संतों से भी बड़ा काम किया है। गीता भवन के रूप में आज समाज को एक ऐसी धरोहर मिल गई है जहां धर्म के साथ पीडि़त मानवता की सेवा का अखंड महायज्ञ भी चलाया जा रहा है। गीता भवन अस्पताल के माध्यम से आम लोगों को जो सेवाएं मिल रही हैं, उनका मुल्यांकन करें तो इससे बड़ा धर्म और कोई नहीं हो सकता। हर वर्ष गीता जयंती महोत्सव की परंपरा स्थापित कर बाबाजी ने इस अंचल के लोगों पर बहुत बड़ा उपकार किया है। प्रसन्नता की बात है कि वर्तमान ट्रस्टी और यहां के प्रबंधक पुरी लगन एवं निष्ठा से धर्म के साथ नर सेवा नारायण सेवा की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं।