महावीर के सत्य, अहिंसा और मैत्री जैसे सिद्धांत हर
देश, काल और हालातों में शाश्वत एवं प्रासंगिक
– उपाध्यायश्री प्रवीण ऋषि म.सा. की निश्रा
इंदौर, .-जैन दर्शन और चिंतन को जितना गहराई से समझेंगे, वह उतना ही व्यापक और प्रासंगिक महसूस होगा। भगवान महावीर स्वामी ने क्षमा जैसा एक सूत्र हमें दे कर समूचे विश्व को सत्य, अहिंसा और मैत्री के ऐसे सिद्धांत दिए हैं जो हर काल, हर देश और हर परिस्थिति में जीव मात्र के लिए शाश्वत और प्रासंगिक है। हर इंसान से जाने अंजाने में कहीं न कहीं गलतियां हो ही जाती है। क्षमा को वीरों का आभूषण कहा गया है। पर्यूषण महापर्व तभी सार्थक होगा, जब हम अपनी तमाम गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा मंागकर एक सुखी,शांत और संस्कारों से समृद्ध समाज की स्थापना में भागीदार बनेंगे। समाज के समक्ष अनेक गंभीर चुनौतियां भी मौजूद हैं। इन सबके मुकाबले के लिए हमें महावीर स्वामी के सिद्धांतों को आत्मसात करने की जरूरत है।
ये पे्ररक विचार हैं उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा के, जो उन्होंने एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग पर चल रहे चातुर्मास में पर्युषण के समापन अवसर पर सामूहिक क्षमापना महोत्सव एवं तपस्वियों के पारणे के उपलक्ष्य में आयोजित धम्र सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उपाध्यायश्री ने सभी समाज बंधुओं को धर्म ग्रंथों पर आधारित क्षमापना का महत्व बताते हुए भावपूर्ण शब्दों में आग्रह किया कि परमात्मा के सिद्धांतों का पूरी निष्ठा से पालन करें । इस अवसर पर श्री ़वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ट्रस्ट की ओर से सभी साधु-साध्वी भगवंतों, श्री संघों, समाज बंधुओं एवं चातुर्मास व्यवस्था से जुड़े सभी सेवकों से क्षमापना की गई। उपाध्यायश्री की प्रेरणा से जीवदया निधि के लिए समाज बंधुओं ने खुले हाथों और खुले मन से दान देने का पुण्यलाभ भी उठाया। जैसे ही उपाध्यायश्री के आशीर्वचन के दौरान सामूहिक क्षमापना का प्रसंग आया, सभी समाजबंधु अपने अपने स्थानों पर खड़े हो गए और एक दूसरे से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगने लगे। इस अवसर पर अनेक आंखे सजल हो उठी। अनेक बंधुओं ने नम आंखों से एक दूसरे के गले मिल कर बीते वर्षों में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगी। महावीर बाग आज भी समाज बंधुओेें की मौजूदगी से खचाखच भरा रहा लेकिन सब ने मास्क, मुंह पटटी और समाजिक दूरी के प्रोटोकाल का पूरी तरह पालन भी किया। बाद में तपस्वियों के लिए पारणे का आयोजन भी सौल्लास संपन्न हुआ।