आज समूचे विश्व को मैत्री भाव की सख्त जरूरत
इंदौर, । किसी के पाप और उसके प्रति कटुता या कड़वाहट को समाप्त करने का दूसरा नाम है क्षमा। किसी के गलत कार्यों को मौन रहकर समर्थन करना भी पाप की श्रेणी में ही आता है। क्षमापना के पांच चरण माने गए हैं – पहला आदिनाथ भगवान, दूसरा गुरू, तीसरा माता-पिता, चौथा स्नेहीजन और परिजन तथा पांचवा और अंतिम चरण है स्वयं से क्षमा मांगना। पाप को आकर्षित करने वाली हमारी चेतना मिथ्यात्व से मुक्त हो और धर्म के प्रति आकर्षित होकर मजबूत बने – ऐसी भावना हमारी होना चाहिए। यही इस पर्युषण पर्व की सार्थकता होगी। आज समूचे विश्व में सबसे पहली और सख्त जरूरत मैत्री भाव की ही है। जिस दिन मैत्री भाव की स्थापना हो जाएगी, उस दिन सारी झंझटे भी दूर हो जाएगीं।
ये दिव्य विचार हैं उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा के, जो उन्होंने आज एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग पर चल रहे चातुर्मास में पर्युषण के मुख्य पर्व संवत्सरी की धर्मसभा में व्यक्त किए। स्थानकवासी जैन समाज के सैकड़ों बंधुओं ने आज संवत्सरी का महापर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया। सुबह धर्मसभा में उपाध्यायश्री प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. ने वारसा सूत्र का वाचन किया और इस महापर्व की महत्ता बताई। इस अवसर पर करीब 65 ऐसे तपस्वियों का श्री वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ट्रस्ट की ओर सम्मान भी किया गया, जिन्होंने 8 या उससे अधिक उपवास किए हैं। चातुर्मास के प्रारंभिक दिनों से ही यहां श्रावक-श्राविकाओं द्वारा तपस्या का क्रम जारी है। । आनंद तीर्थ महिला परिषद की ओर से सुनीता छजलानी, प्रमिला डागरिया, सुवर्णा ठाकुरिया, नीरा मकवाना, शोभना कोठारी, श्रेया जैन, सुशीला निमजा, सुषमा जैन, शीतल जैन, अंजूश्री जैन एवं प्रवीणा जैन ने सभी श्रावकों की अगवानी की। दोपहर में आलोचना पाठ में उपाध्यायश्री ने कहा कि जिस दिन हम मिथ्यात्व से मुक्त हो जाएंगे, हमारे जीवन के सारे कांटे फूलों में बदल जाएंगे और जीवन जीने का एक अलग ही आनंद मिलना शुरू हो जाएगा। उपाध्यायश्री ने सभी समाजबंधुओं को आराधना भी कराई। संध्या को बड़े प्रतिक्रमण में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया और एक-दूसरे से जाने-अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमायाचना की। इस दौरान अनेक भावपूर्ण प्रसंग भी देखने को मिले जब पिछले एक वर्षों से गलतियों का बोझ ढो रहे आराधकों ने गले मिलकर या नम आंखों से एक-दूसरे से क्षमा मांगी। संचालन हस्तीमल झेलावत ने किया और आभार माना संतोष जैन मामा ने।
उपाध्यायश्री ने क्षमापना का महत्व बताते हुए कहा कि यदि हमारे मन में किसी के प्रति दुर्भावना, छल-कपट या बैर भाव नहीं है तो निश्चित मानिए कि आपका बाल भी बांका नहीं होगा। जैन दर्शन की बातें बहुत गहरी हैं। वे सब लोग सौभाग्यशाली हैं, जिन्हें अपनी गलतियों की सजा मिल जाती है। असहमत होना और बैर भाव होना, दोनों में बहुत अंतर है। जिसके साथ दुश्मनी होती है, हमारे मन में उसके प्रति बुरा चिंतन ही आता है लेकिन यदि यह बैर भाव खत्म हो जाए और मैत्री भाव बन जाए तो आपका कोई अनिष्ट नहीं होगा। एक सर्वे से पता चला है कि कैंसर के 61 प्रतिशत मरीज इसलिए मरीज बने हैं कि उन्होंने बैर भाव की गांठ बांध रखी है। पर्युषण महापर्व पर प्रयास करें कि किसी के भी प्रति हमारे मन में किंचित भी अविनय, अवज्ञा और कड़वाहट का भाव नहीं रहे। यदि जाने-अनजाने ऐसा कुछ हो भी तो उसके लिए क्षमापना का दान जरूर कर देना चाहिए। आज विश्व में सबसे पहली जरूरत मैत्री भाव की ही है। जिस दिन मैत्री भाव की स्थापना हो जाएगी, उस दिन सारी झंझटे भी दूर हो जाएगीं।