रिश्तों में माधुर्य होना चाहिए, चुभन नहीं – कल्पवृक्ष
जैसे रिश्ते होंगे तो हर शुभ चिंतन साकार हो उठेेेेगा
इंदौर, । हमारे रिश्ते कल्प वृक्ष की तरह होना चाहिए, बबूल की तरह नहीं। अलग-अलग रास्तों पर चलते हुए भी हमें किसी एक मंजिल पर रिश्ते ही पहंुचा सकते हैं। रिश्तों में माधुर्य होना चाहिए, चुभन नहीं। कल्पवृक्ष जैसे रिश्ते होंगे तो हर शुभ चिंतन साकार हो उठेगा अन्यथा बबूल जैसे रिश्तों से तो लहूलुहान हो जाएंगे। आईये, संकल्प करें कि हम किसी के भी लिए ऐसी नकारात्मक टिप्पणी (नेगेटिव कमेंट्स) नहीं करेंगे, जो किसी की आस्था को भंग करें और जो किसी सीता को वनवास जाने पर बाध्य करे। नकारात्मक टिप्पणी बंद हो गई तो राहु-केतु और शनि भी ठीक हो जाएंगे।
एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग, आनंद समवशरण पर चल रहे स्थानकवासी जैन समाज के पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन की धर्मसभा में उपाध्यायश्री प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. ने उक्त दिव्य बातें कही। धर्मसभा का शुभारंभ अंतगड सूत्र और कल्प सूत्र के वांचन से हुआ। प.पू. तीर्थेश ऋषि म.सा., महासती आदर्श ज्योति म.सा. एवं आत्मज्योति म.सा. ने भी संबोधित किया। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से अचल चौधरी, रमेश भंडारी, जिनेश्वर जैन, प्रकाश भटेवरा, सुमतिलाल छजलानी, सतीशचंद्र तांतेड़, अभय झेलावत, गजेंद्र बोडाना, गजेंद्र तांतेड़, वीरेंद्र कुमार जैन, संतोष जैन, शैलेष निमजा, टी.सी. जैन, राजेंद्र महाजन आदि ने तपस्वियों का सम्मान किया। आनंद तीर्थ महिला परिषद की ओर से महावीर स्वामी के जीवन एवं जैन संतों के साहित्य पर आधारित सुंदर प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। परिषद की ओर से सुनीता छजलानी, प्रमिला डागरिया, शोभना कोठारी एवं प्रवीणा जैन ने संतों की अगवानी की। हस्तीमल झेलावत ने सेवा प्रकल्पों की जानकारियां दी। पर्युषण व्यवस्था समिति के संयोजक विमल चौरड़िया ने बताया कि महावीर बाग पर चल रहे आवासीय शिविर में भी प्रतिदिन तपस्या और साधना का क्रम जारी है। आज श्रावक मन्नालाल गादिया के 38 उपवास पूर्ण होने पर उनका सम्मान भी किया गया। मंगलवार को भगवान के जन्म कल्याणक का उत्सव मनाया जाएगा। आज रात्रि को उपाध्यायश्री ने महावीर की शासन गाथा में भगवान महावीर के 26 जन्मों की यात्रा का भावपूर्ण चित्रण प्रस्तुत किया। संचालन हस्तीमल झेलावत ने किया। आभार माना संतोष जैन ने। धर्मसभा में खतरगच्छ समाज के धर्मनिष्ठ सुश्रावक प्रकाश मालू के देवलोकगमन पर उपाध्यायश्री प्रवीण ऋषि म.सा. ने भावांजलि समर्पित की।
उपाध्यायश्री ने कहा कि आपने अपनी वाणी से अनेक लोगों को धर्मसभाओं से जुड़ने नहीं दिया बल्कि उन्हें सदकर्मों से विमुख भी किया है। शब्दों में बड़ी ताकत होती है। आपका एक शब्द कई लोगों की सेवा को चाकरी में बदल देता है। शुभ चिंतन करेंगे तो अशुभ विचारों से मुक्ति मिल सकेगी। स्वयं को कभी हारता हुआ नहीं देखने का संकल्प भी हमें करना होगा। आपका हाथ आपके सिर पर इस तरह से रखा होना चाहिए कि उसके बाद किसी और के आशीर्वाद की जरूरत ही नहीं रह जाए। संकल्प करें कि कभी भी अपने हाथ को अपने कपाल पर भाग्य को कोसते हुए नहीं रखेंगे। हमारा हाथ ही हम पर आशीर्वाद का प्रतीक होगा। हमें जीवन में कभी भी स्वयं को हेल्पलेस या असहाय अथवा मजबूर मानकर कोई काम नहीं करना है। स्वयं को समर्थ मानेंगे तो मोक्ष का टिकट पक्का है।