मुसीबत को मुसीबत मानेंगे तो और बढ़ जाएगी, उसे एक अवसर मानेंगे तो नए रास्ते भी खुल जाएंगे – प्रवीण ऋषि म.सा.

मुसीबत को मुसीबत मानेंगे तो और बढ़ जाएगी, उसे
एक अवसर मानेंगे तो नए रास्ते भी खुल जाएंगे
– प्रवीण ऋषि म.सा. के प्रवचन

इंदौर, । पहाड़ या गड्ढे से नीचे गिरने वाले के मार्ग में कोई बाधाएं नहीं आती। बाधाएं तो ऊपर चढ़ते वक्त आती है। जो इन बाधाओं को पार कर लेते हैं वही पुरूषार्थी कहलाते हैं। भाग्य के साथ चलने वालों को कुछ नहीं मिलता। मुसीबत को मुसीबत मानकर चलेंगे तो मुसीबत और बढ़ जाएगी, लेकिन यदि मुसीबत को एक अवसर मानकर चलेंगे तो वही मुसीबत नए रास्ते भी खोल देती है।
ये दिव्य विचार हैं उपाध्यायश्री प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. के, जो उन्होंने आज एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग में चल रहे चातुर्मास के दौरान महावीर की शासन कथा सुनाते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में चातुर्मास समिति की ओर से संयोजक अचल चौधरी, ट्रस्ट के मंत्री रमेश भंडारी, प्रकाश भटेवरा, जिनेश्वर जैन एवं संतोष जैन ने सभी साधकों की अगवानी की। श्वेतांबर जैन समाज के पयूर्षण 4 सितंबर से प्रारंभ होने वाले हैं, उनकी तैयारियों के लिए बैठकों का दौर शुरू हो गया है। पयूर्षण महापर्व के दौरान महावीर बाग में भी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
उपाध्यायश्री ने कहा कि महावीर के शासन का सूत्र यही है कि धर्म उपयोग के लिए है। वे अपने धर्म को गांव-गांव, घर-घर और गली-गली तक पहंुचाने के पक्षधर रहे। उनके शासन काल में 14 हजार साधु और 36 हजार साध्वियां थीं। पुरूषार्थ जीवन का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए, भाग्य नहीं। भाग्य के भरोसे जीवन यापन करने वाले मूर्ख होते हैं। मुसीबतों को चुनौती मानकर आगे बढ़ेंगे तो मंजिल भी खिसककर पास आ सकती है। महावीर ने गांव-गांव में अलख जगाकर अपने धर्म को स्थापित किया। उनके धर्म का एक ही लक्ष्य था – जन-जन तक शासन के सूत्र पहंुचे।
उन्होंने राजा श्रेणिक एवं रानी चैन्ना प्रसंग सुनाते हुए कहा कि दोनों के बीच मतभेद थे लेकिन इसके बावजूद एक-दूसरे के प्रति सम्मान भी था। शासन और सत्ता से असहमति का मतलब दुश्मनी नहीं होना चाहिए। वैचारिक विरोध अपनी जगह और शासन अपनी जगह। उस युग में असहमति होती थी लेकिन उसका स्तर इतना छोटा नहीं होता था कि एक-दूसरे से दुश्मनी रखे। महावीर ने अपने धर्म को उपयोग के लिए स्थापित किया। नमक की एक चुटकी भोजन का स्वाद बढ़ा सकती है और ढेर सारी शकर उसका स्वाद बिगाड़ भी सकती है। हम धर्म को सही तरीके से उपयोग में लाएंगे तो जीवन संवर जाएगा लेकिन यदि उसका दुरूपयोग करेंगे या उपयोग करेंगे ही नहीं, तो उसमें धर्म का कोई दोष नहीं होगा। भाग्य, कर्म, नियति या पुरूषार्थ – इनमें सबसे महत्वपूर्ण है पुरूषार्थ। जिसके पास पुरूषार्थ का सोच होता है, वही सिद्ध होते हैं।