भक्ति और साधना के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को संवारें – साध्वी परमानंदा

भक्ति और साधना के मार्ग पर चलकर अपने
जीवन को संवारें – साध्वी परमानंदा

इन्दौर, । चातुर्मास को भक्ति एवं साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। हमारी संस्कृति में चातुर्मास को भगवान शिवाशिव की आराधना का अनुकूल अवसर कहा जाता है। प्रकृति भी इस दौरान अपना श्रृंगार करती है। प्रकृति भी परमात्मा की ही रचना है। हम यदि प्रकृति के साथ ज्यादती या खिलवाड़ करेंगे तो उसके दुष्परिणाम भी हमें तो भुगतना ही होंगे, हमारी नई पीढ़ी को भी भोगना पड़ेंगे। भक्ति और साधना के मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को संवार सकते हैं।
गोधरा की साध्वी परमानंदा सरस्वती ने आज गीता भवन में चातुर्मास की धर्मसभा को संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। साध्वी परमानंदा गीता भवन में प्रतिदिन सुबह 9 से 10 एवं सांय 5.30 से 6.30 बजे तक होंगे। वे भाद्रपद माह में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करेंगीं। आज प्रवचन शुभारंभ के अवसर पर गीता भवन ट्रस्ट की ओर से अध्यक्ष गोपालदास मित्त, मंत्री राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, न्यासी मंडल के महेशचंद्र शास्त्री, दिनेश मित्तल, मनोहर बाहेती, हरीश जाजू आदि ने उनका स्वागत किया।
साध्वी परमानंदा सरस्वती ने कहा कि सत्संग में वहीं लोग आ पाते हैं, जिन पर भगवान की कृपा होती है। संसार के सुख एवं वैभव के साधन तभी तक है, जब तक हमारी सांस हैं। हमें नहीं पता कि हमारी कितनी सांसे हैं इसलिए जीवन की प्रत्येक सांस का सदुपयोग सेवा और भक्ति में होना चाहिए।