श्री श्रीविद्याधाम पर शिवपुराण कथा में तुलसी-शालिग्राम विवाह का उत्सव मना

श्री श्रीविद्याधाम पर  शिवपुराण कथा में तुलसी-शालिग्राम विवाह का उत्सव मना

इन्दौर, । तुलसी भारतीय समाज और संस्कृति का ऐसा महत्वपूर्ण अंग है जिसके बिना कोई भी आंगन पवित्र और निर्मल नहीं माना जा सकता। भगवान शिव शंकर को हम किसी भी नाम और स्वरूप से पुकारें, उनका काम जन-जन का कल्याण करना ही है। समाज की रक्षा के लिए उन्होंने जहर भी पी लिया और अपनी लीलाओं से देवत्व की भूमिका भी निर्वाह की। मां पार्वती का सौंदर्य विलक्षण है।
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री के, जो उन्होंने संस्था श्री राजवंश के तत्वावधान में विमानतल मार्ग स्थित श्री श्रीविद्याधाम पर चल रही शिव महापुराण कथा में जालंधर एवं तुलसी-शालिग्राम चरित्र की कथा के दौरान व्यक्त किए। कथा में तुलसी-शालिग्राम विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। तुलसी को दुल्हन एवं शालिग्राम को दूल्हे के रूप में सजाकर पंडित द्वारा मंत्रोच्चार के बीच सात फेरों के बाद कन्यादान कर विदा किया गया। महिलाओं ने नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। प्रारंभ में आयोजन समिति के शुक्ला, तिवारी, वाजपेयी, द्विवेदी एवं दुबे परिवार की ओर से रामदुलारी शुक्ला, राजेश्वरी तिवारी, पूनम नवीन तिवारी, संस्कृति शुक्ला, किरण शुक्ला, श्रीराज, नेहा तिवारी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
पं. शास्त्री ने कहा कि दुनिया के सुख थोड़े दिनों के ही होते हैं। भगवान का स्वरूप हर दृष्टि से आनंदमय है। हमारा प्रयास बिंदु से सिंधु की ओर बढऩे का होना चाहिए। आखिर बिंदु का अस्तित्व भी सिंधु से ही है और सिंधु से मिलने के बाद बिंदु का कोई वजूद नहीं रह जाता है। तुलसी और शालिग्राम की कथा हमारी संस्कृति में तुलसी के सतीत्व, त्याग और करूणा से जुड़ी ऐसी कथा है जो हर घर में पूजनीय और वंदनीय है। तुलसी में वह शक्ति है कि पत्थर भी जीवंत हो गए। यही कारण है कि शालिग्राम की पूजा भी हर घर में तुलसी के साथ हो रही है।