श्री श्रीविद्याधाम पर चल रही शिवपुराण कथा में उत्सवों का क्रम शुरू – शिव विवाह का उत्सव मना

शिव-पार्वती का विवाह श्रद्धा और विश्वास का समन्वय
श्री श्रीविद्याधाम पर चल रही शिवपुराण कथा में उत्सवों का क्रम शुरू – शिव विवाह का उत्सव मना

इंदौर । जीवन श्रद्धा और विश्वास रूपी दो स्तंभो पर टिका है। किस व्यक्ति में कितनी श्रद्धा हैं, इसे मापने का कोई पैमाना नहीं हैं। कलियुग में श्रद्धा के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की अधिकता देखने को मिलती हैं। शिव-पार्वती का विवाह श्रद्धा और विश्वास का समन्वय है। शिव श्रद्धा है तो पार्वती विश्वास।
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री के, जो उन्होंने संस्था श्री राजवंश के तत्वावधान में विमानतल मार्ग स्थित श्री श्रीविद्याधाम पर चल रही शिव महापुराण कथा में शिव-पार्वती विवाह प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। आज शिव-पार्वती विवाह धूमधाम से मनाया गया। बैंड-बाजों सहित आश्रम परिसर में निकाली गई शिवजी की बारात में भूत-पिशाच और चुड़ैल के स्वांग में आए बच्चे भी शामिल हुए। विवाह की रस्म होते ही सभा मंडप करतल ध्वनि से गूंज उठा। भक्तों ने पुष्पवर्षा कर इस उत्सव को आत्मसात किया। प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से राजेश्वरी तिवारी, रामदुलारी शुक्ला, नीता शुक्ला, शुभम एवं दीपम शुक्ला एवं अन्य श्रद्धालुओं ने व्यासपीठ का पूजन किया।
आज से उत्सवों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। मंगलवार 10 अगस्त को गणेश जन्मोत्सव एवं 11 को तुलसी-शालिग्राम विवाह के उत्सव भी मनाए जाएंगे। समापन दिवस पर शिव परिवार की झांकी सजाई जाएगी। कथा एवं उत्सव कोरोना प्रोटोकाल का पालन करते हुए आयोजित किए जा रहे हैं।
मनोहारी भजनों की प्रस्तुतियों के बीच पं. शास्त्री ने कहा कि शिव-पार्वती का विवाह चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हरिद्वार के कनखल में हुआ। आज भी वहां स्नान करने पर कुंवारी कन्याओं के विवाह जल्द हो जाते हैं। जब तक प्रत्येक व्यक्ति में नारायण का अंश मानने की दृष्टि नहीं आती, हमारी साधना अधूरी ही रहेगी। लोग तीर्थ भी जाते हैं तो पर्यटन की दृष्टि से ऐसा व्यवहार करते हैं जो हमारी संस्कृति और परंपरा के विपरीत हो। हमारे धर्मस्थल जाने-अनजाने में हुए अनुचित एवं पाप सम्मत कार्यों से मुक्ति के माध्यम हैं। इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम रोज पाप करें और गंगा में डुबकी लगाकर हिसाब बराबर कर लें। हमारे कर्मों में परमार्थ और परोपकार का चिंतन होना चाहिए। शिव के साथ शक्ति भी जरूरी है। शक्ति का दूसरा नाम पार्वती अर्थात विश्वास है।