इसे जैविक नहीं, दैविक खेती कहें – भैयाजी जोशी

इसे जैविक नहीं, दैविक खेती कहें – भैयाजी जोशी

इंदौर, । धरती माता एक दाने के बदले में हमें चार सौ गुना अधिक फसल देती है लेकिन हम उसके पेट में भी रसायन के रूप में जहर दे रहे हैं। लुभावने विज्ञापनों ने किसानों को गुमराह कर रखा है। जैविक खेती को हमें गहराई से समझना होगा। यह जैविक नहीं, दैविक खेती है। आदिकाल से हम जैविक खेती ही करते आ रहे हैं। परंपरागत खेती इसी का नाम है। जब तक हम जैविक खेती नहीं अपनाएंगे, एक समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में भागीदार नहीं बन पाएंगे।
केसरबाग रोड़ स्थित श्री अहिल्या माता गौशाला पर आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पूर्व सह सर कार्यवाह एवं संघ के अ.भा. कार्यकारिणी के मार्गदर्शक सदस्य भैयाजी जोशी ने उक्त बातें कही। वे संघ के जैविक खेती एवं उत्पाद पर केंद्रित अ.भा. ग्राम विकास सम्मेलन में मालवा एवं निमाड़ अंचल के लगभग 80 किसानों को संबोधित कर रहे थे। सम्मेलन में आए किसानों ने गौशाला का अवलोकन भी किया और गोबर-गौमूत्र तथा उन्नत नस्ल की घास सहित विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी भी प्राप्त की। भैयाजी जोशी ने करीब साढ़ 4 घंटे तक अहिल्या गौशाला में रहते हुए यहां की विभिन्न गतिविधियों के बारे में प्रबंध समिति के अध्यक्ष रवि सेठी, सचिव पुष्पेंद्र धनोतिया एवं संयोजक सी.के. अग्रवाल से विस्तृत जानकारी ली। उन्होंने गौशाला में आते ही सप्त गौमाता मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गौपूजन भी किया। बाद में अ.भा. ग्राम विकास सम्मेलन में पहुंचकर उन्होंने किसान भाईयों से पहले तो उनके अनुभव सुने और फिर अपने संबोधन में जैविक खेती के बारे में अनेक महत्वपूर्ण बातें कही। संचालन जैविक कृषि सलाहकार अजीत केलकर ने किया।
सम्मेलन में किसानों ने यह भी कहा कि हम जैविक खेती तो कर रहे हैं लेकिन हमारे उत्पाद आम लोगों तक नहीं पहंुच पाते हैं। इस स्थिति में सरकार को ऐसी कोई योजना जरूर बनाना चाहिए जिसका लाभ जैविक खेती करने वाले किसानों को मिल सके। सम्मेलन में बड़नगर के गोपाल डोडिया ने वृक्षारोपण, जल संवर्धन एवं मटका खाद का महत्व बताया, वहीं खरगोन जिले के शेरसिंह, ओमप्रकाश एवं अक्षय कृषि परिवार के अध्यक्ष मनोज भाई सोलंकी ने भी जैविक खाद, जैविक इनपुट केंद्र एवं रसायन से होने वाली कृषि की विकृति की ओर ध्यानाकर्षण किया। भैयाजी जोशी ने अपने उद्बोधन में सभी बिंदुओं का समावेश करते हुए कहा कि जैविक नहीं, आप लोग दैविक खेती कर रहे हैं। रसायन के प्रयोग से हम धरती की उर्वरा शक्ति को कमजोर कर रहे हैं। जैविक खेती ही हमारी परंपरागत खेती है। आप परिणाम की चिंता किए बिना जैविक खेती को आत्मसात करते रहें। उन्होंने गौशाला में विकसित की जा रही उन्नत नस्ल की घास एवं गोबर से निर्मित खाद के बारे में भी स्वयं प्लांट का अवलोकन कर जानकारी प्राप्त की और गौशाला की व्यवस्थाओं पर प्रसन्नता व्यक्त की।