सदगुणों को आत्मसात करने से होगी बुद्धि निर्मल और पवित्र- शास्त्री

सदगुणों को आत्मसात करने से होगी बुद्धि निर्मल और पवित्र – आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री

इन्दौर, । प्रशंसा से अभिमान और अभिमान से पतन निश्चित होता है लेकिन मन और बुद्धि के बीच समन्वय से ही हम तमोगुण से बच सकते हैं। बुद्धि तभी निर्मल और पवित्र होगी, जब हम सदगुणों को आत्मसात करेंगे। सत्संग और भगवान की कथा हमारे विवेक को सही दिशा में ले जाते हैं। शिव पुराण पाप से निवृत्त होने की कथा है।
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री के, जो उन्होंने विमानतल मार्ग स्थित श्री श्रीविद्याधाम पर संस्था श्री राजवंश के तत्वावधान में चल रही शिव महापुराण कथा में व्यक्त किए। प्रारंभ में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आयोजन समिति की ओर से रामदुलारी शुक्ला, राजेश्वरी तिवारी, नीता शुक्ला, शुभम एवं दीपम शुक्ला एवं अन्य श्रद्धालुओं ने व्यासपीठ का पूजन किया। पं. शास्त्री यहां 14 अगस्त तक प्रतिदिन दोपहर 2 से 6 बजे तक कथामृत की वर्षा करेंगे। कथा के दौरान शिवलिंग पूजन विधि, भस्म एवं रूद्राक्ष महिमा, पार्वती जन्मोत्सव, शिव-पार्वती विवाह, कार्तिकेय जन्म प्रसंग, तुलसी-जालंधर कथा, शिवरात्रि व्रत कथा, जप का महात्यम सहित भगवान शिवाशिव की आराधना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या होगी।
पं. शास्त्री ने कहा कि थोड़ी सी सफलता मिलते ही हमें अहंकार घेर लेता है। चिंतन करें कि भगवान भी कर्ता हैं, वे सृष्टि का पालन-पोषण और निर्धारण करने जैसे महत्वपूर्ण काम करते हैं, उन्हें तो कभी अहंकार नहीं होता, लेकिन हम छोटी सी उपलब्धि के श्रेय का सेहरा अपने माथे पर बांधने में देर नहीं करते। यह अहंकार ही हमारे पतन का मुख्य कारण बन जाता है। मोह हमारे विकारों को जन्म देता है। कर्तापन का अहंकार हमेशा हमारे आसपास रहता है। शिव पुराण की कथा हमें अपने कर्माे के लिए सही दिशा की ओर ले जाने वाली कथा है, यह हमारे विवेक की जागृति का मार्ग भी बताती है। जिस दिन हम पापमुक्त हो जाएंगे, हमारा विवेक भी जागृत हो उठेगा। हमारे सारे कर्म सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से भरे होते हैं। मोह के वशीभूत होकर ही हम तमोगुण की ओर प्रवृत्त होते हैं।