श्रद्धा का खंडित होना ही सबसे बड़ा पाप – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा.
इंदौर । बने बनाए रास्ते पर तो सभी चलते हैं लेकिन खुद अपना रास्ता बनाकर उस पर चलना चुनौतीभरा काम है जिसे भगवान महावीर स्वामी ने करके दिखाया। हमारी श्रद्धा अखंड होना चाहिए। श्रद्धा का खंडित होना ही सबसे बड़ा पाप है। अनुशासन के बिना कोई शासन नहीं चल सकता। धर्म की स्थापना के लिए सेवा और समर्पण का भाव अपरिहार्य है।
ये दिव्य विचार हैं उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. के, जो उन्होंने एरोड्रम रोड स्थित आनंद समवशरण, महावीर बाग में चातुर्मासिक धर्मसभा के दौरान आनंद जन्मोत्सव के चौथे दिन आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। आनंद जन्मोत्सव में आज करीब 400 साधकों ने एकासना दिवस के उपलक्ष्य में एक समय भोजन करने का संकल्प व्यक्त किया। महिलाओं और युवकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कक्षाएं भी प्रत्येक शनिवार-रविवार को दोपहर में संचालित की जा रही है। धर्मसभा के प्रारंभ में चातुर्मास आयोजन समिति की ओर से अचल चौधरी, रमेश भंडारी, प्रकाश भटेवरा, जिनेश्वर जैन, संतोष जैन मामा आदि ने सभी साधु-साध्वी-भगवंतों एवं साधकों की अगवानी की। धर्मसभा का संचालन हस्तीमल झेलावत ने किया।
उपाध्यायश्री ने कहा कि महावीर स्वामी ने अपने शासन काल मंे अपने चलने के लिए अपने मार्ग का निर्माण स्वयं किया। उस समय 22 तीर्थंकरों के प्रभाव को चुनौती देने वाला पल यही था कि महावीर स्वामी ने एक चले आ रहे धर्मसंघ के सामने नया धर्मसंघ स्थापित करने की शुरूआत की। समर्पण के लिए एक मस्तक किसी के पैरों में झुकाना होता है, ऐसा कि फिर किसी और के चरणों में झुकाना ही नहीं पड़े। इस तरह महावीर स्वामी ने एक अनूठी क्रांति का बिगुल फूंका