चतुर्मास हमारी आत्मा को जागृत करने का शंखनाद
– उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा.
इंदौर,। संघर्ष सत्ता के गलियारों में हो सकता है, धर्म की राजधानी में नहीं होना चाहिए। आज के दौर में वैचारिक मर्यादाओं का पालन बहुत जरूरी है। द्रोपदी के एक कमेंट से महाभारत का शंखनाद हो गया था। धोबी के एक कमेंट से सीताजी को घर का त्याग करना पड़ा था। हम भी अपने रोजमर्रा के जीवन में ऐसा कोई कमेंट नहीं करें, जो किसी की नरक यात्रा का कारण बन जाए। चातुर्मास हमारी आत्मा को जागृत करने का शंखनाद है। चातुर्मास के चार माह नो कमेंट्स, कमिटमेंट, गलतियों के लिए नो रिपीटेशन और सरेंडर टू प्रभु – ये चार सूत्र हम सबके जीवन में होना चाहिए।
एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग में स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ट्रस्ट के तत्वावधान में आज से प्रारंभ हुए चातुर्मास महोत्सव में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. ने अपने आशीर्वचन में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए और भक्तों का आव्हान किया कि वे अपने जीवन को व्यसनमुक्त बनाएं। इस मौके पर प्रवीण सुराणा की प्रेरणा से चातुर्मास के पहले दिन ही भीकनगांव के मिथुन राठौर ने पशुबलि, बीकानेर के मांगीलाल विश्नोई ने मांसाहार तथा श्यामा विश्नोई ने शराब एवं तंबाकू छोड़ने का वचन देते हुए व्यसन मुक्त जीवन जीने का संकल्प व्यक्त किया। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. ने धर्मसभा में इन तीनों बंधुओं के संकल्प की खुले मन से प्रशंसा की। चातुर्मास आयोजन समिति के प्रमुख संयोजक अचल चौधरी, रमेश भंडारी, प्रकाश भटेवरा, संतोष जैन मामा, राजेंद्र महाजन आदि ने तीनों बंधुओं का शॉल पहनाकर सम्मान किया।
चातुर्मास महोत्सव की पहली धर्मसभा में दक्षिण ज्योति महासती आदर्शज्योति म.सा. ने कहा कि चातुर्मास अध्यात्म जागृति का ऐसा महापर्व है जो हमारी आत्मा को चैतन्य बनाता है। जिस तरह छत और पेड़ों पर पड़ी धूल वर्षाकाल में साफ हो जाती है, उसी तरह हम सबके जीवन में चातुर्मास भी मन पर पड़े विकारों की धूल को साफ करता है। वर्षाकाल में प्रकृति लहलहा उठती है, वैसे ही चातुर्मास भी जीवन को लहलहाने का मार्ग प्रशस्त करता है। कई बार लोग तर्क-कुतर्क करने लगते हैं। आधी अधूरी बातों पर बिना सोचे समझे टिप्पणियां करने लगते हैं। ऐसा अर्थ अनर्थ नहीं लगाना चाहिए। यदि बर्तन औंधा होगा तो हम प्रवचनरूपी अमृत की बूंदों से वंचित रह जाएंगे। धर्मसभा में प.पू. तीर्थेश म.सा. ने ‘सोने की तिजौरी में कंकर नहीं भरना’… गीत भी सुनाया।
उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. ने कहा कि जिंदगी भर न सही, चातुर्मास के चार माह में ही हम यदि संघ, समिति, समाज और संगठन में नकारात्मक बातें बंद कर दें तो हम आग नहीं, बाग लगाने वाले बन सकते हैं। चातुर्मास में अपने परिवार के सदस्यों को भी यही प्रेरणा दें कि हम अपनों के बीच लड़ाई नहीं कराएंगे। हमारे जीवन मंे पाप के प्रवेश के मार्ग बंद रहना चाहिए। हम घरों में ताले इसलिए लगाते हैं कि चोर नहीं आ पाए। पापरूपी चोर भी कभी भी आ सकता है। चातुर्मास एक व्यवस्था है जिसमें हम स्वयं को मर्यादा और अनुशासन में बांध सकते हैं। हम सब संकल्प करें कि चातुर्मास की अवधि में होटल, सिनेमा या अन्य किसी ऐसे स्थान पर नहीं जाएंगे, जहां मर्यादाओं का उल्लंघन होता हो। यदि हम दूसरों से पीड़ा लेना नहीं चहाते तो हमें भी दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाने का संकल्प लेना होगा। दूसरों के विश्वास को तोड़ना अक्षम्य पाप है। निंदा और चुगली का एक भी शब्द अनर्थ कर सकता है इसलिए जीवन में व्यर्थ निंदा, कमेंट्स से बचकर रहें।
आज से महावीर शासन गाथा – अ.भा. जैन श्वेतांबर सोशल ग्रुप्स फेडरेशन के तत्वावधान में महावीर बाग में चल रहे चातुर्मास में शहर के इतिहास में पहली बार उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. महावीर शासन गाथा सुनाएंगे।