राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक आदरणीय मोहनजी भागवत के भाषणों का सार सामाजिक समरसता – इरफ़ान अहमद

नई दिल्ली (संवाददाता) । वरिष्ठ समाज सेवक और पसमांदा मुस्लिम समाज उत्थान समिति संघ के मुख्य राष्ट्रीय संरक्षक मोहम्मद इरफ़ान अहमद ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक आदरणीय श्री मोहनजी भागवत ने अपने विविध प्रबोधनों में देश में सामाजिक समरसता (नैशनल इंटीग्रेशन) पर प्रमुखता से ज़ोर दिया है उन्होंने देश के सभी समाजों-वर्गों में एकता और अखंडता के मद्देनजर अपने देश-विदेश तथा अपने गांव-शहर से लेकर अपने घर-परिवार तक सामाजिक समरसता के दायित्व को निभाने के विविध पहलुओं पर अपने विस्तृत विचार प्रकट किये हैं, जो कि हम और हमारे समाज द्वारा देश के विविधता में एकता के प्रयास को बल देता है।
सामाजिक समरसता का सरल अर्थ आदरणीय मोहनजी भागवत ने बताया कि किसी भी तरह कि सामाजिक या व्यक्तिगत भिन्नता जैसे जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता या वर्ण की परवाह किये बग़ैर समाज के सभी वर्गों में प्रेम, सद्भाव, एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव, एकता तथा सह अस्तित्व की भावना को बढ़ाना है, इसका प्रमुख उद्देश्य समाज से जातिगत भेदभाव जैसे अस्पृश्यता, उँच-नीच की भावना को पूरी तराह समाप्त किया जाना चाहिए । हम सबको अपने राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़कर एक मज़बूत, एकीकृत और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करना है !!
हमारे देश का मुख्य विचार “वसुधैव कुटुम्बकम” जो सारे संसार को एक सूत्र में जोड़ने की भावना प्रकट करता है, देश में चली आ रही कुरीतियों और अस्पृश्यता पर हमने सीधी चोट की है !! जातिगत भेदभाव देश की नींव को कमज़ोर करता है, कोई ऊंचा नहीं कोई नीचा नहीं हम सब एक हैं ।
अपने देश पर विदेशी आक्रमण होते रहे उनके द्वारा दमन नीति भी चलती रही लेकिन देश अपने सांस्कृतिक विरासत के साथ खड़ा रहा, कोई मुझसे पूछता है कि देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता होनी चाहिए, मैं कहता हूँ जो एक ही हैं वहाँ यह कौनसी नई एकता..? यह वैज्ञानीक सत्य है कि पिछले 40 हज़ार साल से हमारा डीएनए एक ही है, हमारी पूजा पद्धति भले ही बदल गई हो लेकिन देश की सांस्कृतिक धारा में हम एक हैं, अतः हम सब मिलकर समाज के विभिन्न वर्गों को एक सूत्र में बांधकर उनमें राष्ट्रीय भावना को और अधिक मज़बूत करना चाहते हैं ।