भारत के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक गौरव विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ

रतलाम । सृजन महाविद्यालय में भारत के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक गौरव विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सृजन भारत के संयोजक अनिल झालानी ने की।
इस अवसर पर झालानी ने भारतीय वेशभूषा और आदिवासी संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस प्रकार सरकार आदिवासियों को आरक्षण प्रदान करती है, उसी प्रकार हमें उस संस्कृति की भी रक्षा करनी चाहिए जिसके संरक्षण के लिए यह आरक्षण दिया गया है। उन्होंने कहा कि आज संयुक्त राष्ट्र में अनेक नेता अपनी पारंपरिक वेशभूषा में गर्व अनुभव करते हैं। उसी प्रकार हमें भी अपनी संस्कृति और पहनावे पर गर्व होना चाहिए, न कि शर्मिंदगी। आरक्षण का आशय अपने अस्तित्व को त्यागकर आगे बढ़ना नहीं, बल्कि अपनी पहचान को जीवित रखते हुए विश्व पटल पर प्रस्तुत करना है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, जनजाति कल्याण कार्यकर्ता एवं संघ से जुड़े विजेंद्र सिंह रहे। उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा—“White is not always right। अब समय आ गया है कि भारत का विद्यार्थी गुलामी की मानसिकता से ऊपर उठकर आत्मगौरव और स्वामित्व की ओर बढ़े। जब हम जागेंगे, तभी राष्ट्र का गौरव भी जागेगा।”
सिंह ने आगे कहा कि भारत की सभ्यता और संस्कृति सीमित दायरे में बंधी नहीं है, बल्कि यह विश्व को सद्भावना का संदेश देने वाली है। “हमने कभी अपनी जय नहीं बोली, बल्कि सदैव उद्घोष किया सद्भावना प्राणियों में हो, विश्व की जय हो। यही हमारी सभ्यता का वास्तविक स्वरूप है।”
संस्था के समन्वयक और कार्यक्रम के संचालक निसर्ग दुबे ने कहा कि भारत ने कभी किसी देश को गुलाम बनाने के लिए आक्रमण नहीं किया, बल्कि यह देश अपनी शिक्षा और शोध परंपरा के लिए जाना जाता रहा है। “हमने विश्व को उपनिषद और शून्य जैसे महान ज्ञान दिए। आज के विद्यार्थियों का दायित्व है कि वे अपनी शिक्षा और शोध को माँ भारती के चरणों में समर्पित करें। यदि ऐसा होता है, तो निश्चय ही भारत पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर होगा।” कार्यक्रम में रतलाम दाल मिल के स्वामी शुभम सुरेखा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।