सुख का अनुभव करना है तो उसे छोड़ना होगा- पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

रतलाम, 4 जुलाई 2025। धर्मदास गणनायक प्रवर्तकदेव श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. व मुनिमंडल का श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल नौलाईपुरा स्थानक पर मंगल प्रवेश के पश्चात शुक्रवार को यहां व्याख्यान हुए।
पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि आपको भगवान की वाणी सुनकर संसार में राग बढ़ाने की इच्छा होती है या घटने की। संसार में पर पदार्थों में सुख माननेवाले जीव उन पदार्थों में ही आनंद आता है, उसे क्यों छोड़ेगा? जिनवाणी कहती है कि यह सुख वास्तविक नहीं है, सुख का आभास मात्र है । सच्चे सुख का अनुभव करना है तो उसे छोड़ना होगा। पाप क्रियाओं को घटाने का प्रयास जीव अनुष्ठानों के माध्यम से करता है। प्रायश्चित, अनुमोदना और क्षमापना करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। मोह के उदय में व्यक्ति कई बार गलत को सही मान लेता है। सोते हुए को जगाना आसान है । लेकिन यदि कोई सोने का ढोंग कर रहा है तो उसे जगाना बहुत मुश्किल है। प्रतिक्रमण के माध्यम से साधक को श्रद्धा भी होती है और तृष्णा भी मिटती है। मन वचन की शुद्धि भी होती है।
रत्नपुरी गौरव श्री पावनमुनिजी म.सा. ने व्याख्यान में कहा कि मान-सम्मान की भावना अहंकार पैदा करती है। इसकी इच्छा होना लोभ है, उसके लिए माया भी करना पड़ती है। क्रोध को क्षमा से, मान को विनय से, माया को सरलता से, लोभ को संतोष से जीतना होगा। यदि ये चारों कषाय यह बढ़ रहै है तो समझ लेना कि खतरे की घंटी है। हमें तय करना होगा कि हमारा प्रयास किस और है, इसे बढ़ाने में या कम करने में। इस बात का चिंतन सभी को करना होगा, स्वयं का अवलोकन करें। यदि सुखी होना चाहते हैं तो इन्हें घटाने का प्रयास निरंतर करें। जीवन में संतोष बहुत जरूरी है, यह आ गया तो सारे व्यसनों को घटाने की शक्ति आ जाएगी। क्रोध को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। आप सहनशीलता बढ़ाएं। क्षमा का भाव रखने से आप क्रोध को जीत सकते हैं। हम चाहे तो अपने क्रोध को निष्फल कर सकते हैं। हमारे कर्म के उदय को निष्फल करना हमारे हाथ में है। जीवन में कभी अहंकार नहीं होना चाहिए। हमेशा विनय करें, मीठा बोले, सभी को मान-सम्मान दे। यदि आप विनय को सामने खड़ा करोगे तो मान गलने लगेगा। यदि किसी चीज को हम छल, कपट, धोखे से अपनाते हैं तो यह माया का रूप है। कोई नेगेटिव कहे तो उसे पॉजिटिव लें, क्योंकि माया, मोक्ष के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ने देती है। हमेशा सरलता को धारण करें, किसी को गलत न बोले, जीवन में सरलता का गुण महत्वपूर्ण है। मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए साधक के लिए सरलता का गुण आवश्यक है। लोभ सब गुणों का नाश करता है। परिग्रह वृद्धि भी लोभ ही है। लोभ को संतोष से खत्म कर सकते हैं।
संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया। मुनिमंडल के व्याख्यान शनिवार को भी श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल नौलाईपुरा स्थानक पर प्रातः 9.15 बजे से 10.15 बजे तक होंगे। धर्मसभा में शुक्रवार को पूज्य श्री दिलीपमुनिजी म.सा. के सांसारिक परिजन लिमड़ी व दाहोद से प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा., मुनिमंडल व साध्वी मंडल के दर्शनार्थ आए।