ऑपरेशन सिंदूर के वैश्विक मंच वाली टीम में मध्यप्रदेश से एक भी सांसद नहीं
भोपाल। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की जानकारी वैश्विक मंचों पर पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने एक सर्वदलीय सांसदों का प्रतिनिधिमंडल बनाया, जो 22 मई से अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जापान जैसे 32 देशों का दौरा करेगा। लेकिन इस प्रतिनिधिमंडल में मध्यप्रदेश के एक भी सांसद को जगह नहीं मिली।
यह मध्यप्रदेश के लिए बेहद शर्मनाक है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रदेश के सांसद इतने नकारे और निकम्मे हैं कि वे इस जिम्मेदारी के लायक ही नहीं समझे गए?
क्या मध्यप्रदेश की जनता ने 2024 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सभी 29 सीटें जिताकर कोई बड़ी गलती कर दी है। मध्यप्रदेश की जनता ने बीजेपी पर पूर्ण भरोसा जताया, लेकिन बदले में बीजेपी ने मध्यप्रदेश के प्रतिनिधित्व को ही दुत्कार दिया। जब बात वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष रखने की आई, तो मध्यप्रदेश के एक भी सांसद को इस टीम मे नहीं लिया गया।
क्या यह इसलिए हुआ क्योंकि मध्यप्रदेश के बीजेपी नेता, जैसे मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, अपने विवादित बयानों से सेना का अपमान कर चुके हैं? विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर में अहम भूमिका निभाने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकियों की बहन’ कहकर न केवल उनका, बल्कि पूरी सेना का अपमान किया। वहीं, जगदीश देवड़ा ने जबलपुर में कहा कि “पूरा देश, सेना और सैनिक प्रधानमंत्री मोदी के चरणों में नतमस्तक हैं,” जिसे पूरे देश ने एक सुर में सेना के शौर्य का अपमान बताया।
इस प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न दलों के प्रमुख नेता शामिल हैं, लेकिन मध्यप्रदेश से एक भी नाम नहीं! क्या मध्यप्रदेश के सांसदों में न तो कूटनीतिक समझ है, न ही वैश्विक मंचों पर बोलने की हिम्मत? या फिर क्या मध्यप्रदेश के विधायक, मंत्री और सांसद सिर्फ सेना को गाली देने और सस्ती सियासत करने के काम के बचे हैं?
मध्यप्रदेश के इस अपमान के लिए सिर्फ सांसद ही जिम्मेदार नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार और खासकर मुख्यमंत्री मोहन यादव की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। क्या मुख्यमंत्री मोहन यादव में इतनी हिम्मत है कि वे अपनी केंद्र सरकार से पूछ सकें कि मध्यप्रदेश के सभी सांसदों को क्यों रिजेक्ट कर दिया गया? या फिर वे भी मोहन यादव की ही तरह केंद्र के सामने नतमस्तक रहकर अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं?
मध्यप्रदेश के 100% सांसदों का इस तरह रिजेक्ट होना उनकी अक्षमता और निकम्मेपन का जीता-जागता सबूत है।
प्रदेश की जनता को अब यह सोचना होगा कि क्या वे ऐसे सांसदों और नेतृत्व को चुनते रहेंगे, जिन्हें जनता ने तो जिताया, लेकिन बीजेपी ने ही नकारा और अप्रासंगिक मान लिया? मध्यप्रदेश के सांसदों और मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे इस अपमान से सबक लें और केंद्र सरकार की चरण वंदना करने की बजाय मध्यप्रदेश के मुद्दों को उठाकर अपनी जगह बनाएं। वरना, जनता का गुस्सा और इतिहास मध्यप्रदेश के इन निकम्मों को कभी माफ नहीं करेगा।