भारत के लिए बढ़ता खतरा – बंगलादेश – प्रो. देवेन्द्र कुमार शर्मा

भारत को बंगलादेश से खतरा बढ़ता ही जा रहा है। बंगलादेश का मुख्य सलाहकार मोहम्मद युनुस, वास्तव में सर्वेसर्वा, अभी-अभी चीन यात्रा पर गया था। वहां उसने बंगलादेश में चीन को व्यापार प्रारंभ करने का निमंत्रण चीन के राष्ट्रपति को दिया। उसने इच्छा जाहिर की है कि चीन बंगलादेश में चिकन नेक के पास व्यापार शुरू करे। चिकन नेक वह पतला गलियारा है जिसमें होकर भारत का व्यवसाय और यातायात गुजरता है। यह पतला गलियारा ही भारत को पूर्वी सीमांतर राज्यों अरूणाचल, असम आदि से जोड़ता है। व्यवसाय और सुरक्षा दोनों की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। चीन हमेशा से बंगलादेश में भारत के प्रभाव को कम करने का प्रयास करता रहा है। शेख हसीना के प्रधानमंत्री रहते चीन को इसमें अधिक सफलता नहीं मिली किन्तु अब बंगलादेश में सत्ता पर बैठे लोग पूरी तरह भारत विरोधी हैं। लगता है चीन इस अवसर का दुरुपयोग करेगा और बंगलादेश में अपने प्रभाव को बढ़ाएगा। ऐसा करके वह भारत के खिलाफ एक और सफल मोर्चा स्थापित कर लेगा। यह भारत की बहुत महत्वपूर्ण रणनीतिक असफलता होगी। चीन-पाकिस्तान में पहले से ही उसके पैर जमाए बैठा है। श्रीलंका का कोलंबो बंदरगाह चीन 99 वर्ष के लिए पट्टे पर पहले ही ले चुका है। यदि बंगलादेश में भी चीन अपने पैर जमाने में सफल हो जाता है, तो वह भारत को तीन तरफ से घेरने में सफल हो जाएगा। चीन की इस सफलता को हम भारत की विदेश और सुरक्षा नीति की असफलता कह सकते हैं।
चिकन नेक को सिलीगुड़ी कॉरिडोर के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल यह 60 किलोमीटर लंबा क्षेत्र है और करीब 22 किलोमीटर चौड़ा है। यह भारत की मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। पूर्वोत्तर राज्यों को सेवन सिस्टर्स कहा जाता है। इसे चिकन नेक इसलिए कहते हैं क्योंकि यह मुर्गी की गर्दन की तरह ही पतला है। यानी 22 किलोमीटर चौड़ा रास्ता मेनलैंड इंडिया को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है। यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है। यह कॉरिडोर नेपाल, चीन, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से घिरा हुआ है। इसलिए इसका महत्व और भी अधिक है।
चीन बंगलादेश के निमंत्रण को स्वीकार कर ही लेगा। बंगलादेश में पैर जमाकर चीन भारत के खिलाफ सामरिक दृष्टि से अधिक अच्छी स्थिति में आ सकता है। चीन का षड्यंत्रकारी स्वभाव पूरी दुनिया को पता है। व्यापार के नाम पर वह उसके सैनिकों को बंगलादेश में भेज सकता है और युद्ध होने की स्थिति में चिकन नेक का रास्ता भारत के लिए बंद कर सकता है। हम जानते ही है कि अरूणाचल प्रदेश पर चीन कब्जा करना चाहता है। वह कई बार अरूणाचल को विवादित क्षेत्र बता चुका है। भारत के सीमा सुरक्षा बल की चीन के सीमा रक्षकों से झड़प होती रहती है। अरूणाचल के नागरिकों को भारत द्वारा पासपोर्ट जारी करने पर भी चीन आपत्ति जताता है और उसे स्वीकार नहीं करता। स्थिति स्पष्ट है -बंगलादेश में चीन की उपस्थिति भारत के लिए बहुत बड़े खतरे की घंटी होगी। भारत को सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसा लगता है बंगलादेश के रूप में बढ़ते खतरे को भारत गंभीरता से नहीं ले रहा, बाद में पछताना पड़ेगा।
यद्यपि मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत की सुरक्षा नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये हैं। भारत एक सशक्त देश होकर उभरा है लेकिन कभी कभी मोदी सरकार की किसी समस्या विशेष को लेकर उसके प्रति बेरूखी समझ में नहीं आती। बंगलादेश की समस्या इसका नवीनतम उदाहरण है। बंगलादेश की सत्ता पर कब्जा करते ही अतिवादी धर्मांध तत्व बंगलादेश में रहने वाले हिन्दू के साथ बहुत अत्याचार कर रहे हैं और भारत का खुलेआम विरोध हो रहा है। इस घटना क्रम को भारत एक असहाय देश की तरह देख रहा है। चीन के सामने नहीं झुकने वाला देश भारत बंगलादेश के सामने असहाय नजर आ रहा है। भारत के व्यवहार से ऐसा लगता है कि उसे बंगलादेश की घटनाओं से कुछ लेना – देना नहीं, यह नीति बहुत अनुचित है। भारत को बंगलादेश में होने वाली घटनाओं के बाद भारत और हिन्दू विरोधी नीति के प्रति सख्ती दिखानी चाहिए। यदि भारत ने समय रहते कार्यवाही नहीं की तो भारत के लिए बहुत ही अनुचित-कष्टदायी परिणाम होंगे, किन्तु भारत निर्लिप्त होकर बैठा है मानो बंगलादेश की घटनाओं का उस पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। बंगलादेश का भारत विरोधी हो जाना बहुत बड़ा खतरा है। बंगलादेश की सामरिक स्थिति ही ऐसी है कि वहां से भारत को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया जा सकता है। भारत सरकार में बैठे लोग ये सब समझ ही रहे होंगे किन्तु उनकी बंगलादेश समस्या के प्रति बेरुखी समझ में नहीं आती। छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं कहने वाली सरकार चुप क्यों है? बंगलादेश से भारत के लिए बढ़ते खतरे नहीं समझना क्या दर्शाता है? ऐसी निर्लिप्त नीति का कारण भी समझ में नहीं आता?
बंगलादेश की बुद्धि ठीक करने के कई उपाय भारत के पास हैं। अधिकतर आवश्यक वस्तुओं के लिए बंगलादेश भारत पर निर्भर है। बिना युद्ध किये भी भारत बंगलादेश को घुटनों पर ला सकता है। फिर भी भारत सरकार की उदासीनता समझना बहुत कठिन है जितनी देरी होगी समस्या उतनी विकट होती जाएगी। कई उदाहरण बताते हैं कि अतिवादी समझने वाले नहीं हैं। अत्याचार और दुराचार करना ही उनका मुख्य उद्देश्य रहता है। यदि भारत मुकदर्शक बना रहा तो शीघ्र ही बंगलादेश भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा और, जैसे पाकिस्तान में हुए, हिन्दू बंगलादेश में समाप्त हो जाएंगे।
लिखते-लिखते खबर आई कि थाईलैंड में मोदीजी और मोहम्मद युनुस की मुलाकात हुई। मोदीजी ने बंगलादेश में हिन्दूओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा युनुस के सामने उठाया लेकिन ऐसा लगता नहीं कि इसका कोई उचित परिणाम सामने आएगा। बंगलादेश जिस राह पर चल रहा है उससे वह हटने वाला नहीं। बातचीत का रास्ता तो सज्जन के लिए होता है, दुर्जन तो केवल ताकत की भाषा समझता है। 6 माह से अधिक हो गए भारत चुपचाप बैठा है इस चुप्पी के दुर्गामी परिणाम भारत के लिए अच्छे नहीं होंगे। हमें चीन से सिखना चाहिए। वह अपने सभी पड़ौसियों पर कुछ न कुछ दबाव डालता ही रहता है। भारत को भी अपनी शक्ति का परिचय देना चाहिए। छोटे-छोटे देश आंख दिखायें और हम चुपचाप सहन करते रहे यह भारत जैसे विशाल और अब शक्तिशाली देश के लिए उचित नहीं। आशा करते हैं कि भारत शीघ्र ही कठोर कदम बंगलादेश के प्रति उठाएगा।