विपक्ष ने हंगामा कर संसद स्थगित करवाने को अपना स्थायी कार्य बना लिया है। वर्षाकालीन सत्र छोड़ दें तो संसद के पिछले बहुत सारे सत्र स्थगन की भेट चढ़ गये। संसद पर प्रतिमिनिट बहुत धन खर्च होता है। यह करीब 2,50,000/- रूपए प्रतिमिनिट है। इस विषय पर विपक्ष की बहुत बार आलोचना हो चुकी है। कई समीक्षक इस पर लिख चुके हैं किन्तु जब-जब भी संसद में हंगामे की खबर आती है सचेत नागरिक का मन उद्वेलित हो जाता है। आम नागरिक के मन में विपक्ष के प्रति आक्रोश पैदा होता है परन्तु विपक्ष बहुत असंवेदनशील है उसे देश के नागरिकों की भावनाओं की उनके आक्रोश की परवाह नहीं।
विपक्ष संसद में हंगामा कर कार्यवाही स्थगित करवाकर प्रसन्न होता होगा किन्तु वह यह नहीं समझता कि वह अपना स्वयं का नुकसान करता है। संसद में हंगामा या संसद का बहिष्कार करके विपक्ष को क्या प्राप्त होता है? उलटे वह सरकार – सत्तापक्ष को दबोचने का अच्छा अवसर खो देता है। विपक्ष को सत्तापक्ष-सरकार की आलोचना करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ना चाहिये। यह उनका संवैधानिक उत्तरदायित्व भी है। संसद की कार्यवाही बंद करवाकर विपक्ष अपने समर्थक मतदाताओं का भी अपमान करता है, जिन्होंने उन्हें वोट दिया उनका सरासर निरादर है। विपक्ष को चाहिए कि जिस दिन विपक्ष हंगामा कर संसद बंद करवाये उस दिन का वेतन – भत्ता न लें। शायद ऐसा होता नहीं। किन्तु हम अनुभव करते हैं कि उन्हें जनभावनाओं की कोई परवाह नहीं। 5 साल हंगामा करो और ऐश करो। नेता प्रतिपक्ष पहले दिन सदन में अनुपस्थित थे। यह प्रजातंत्र के प्रति उनके आदर को दर्शाता है। यदि विपक्ष गंभीरता से संसद की कार्यवाही में भाग लेगा, तो उनका सम्मान नागरिकों के मन में बढ़ेगा। उन्हें सरकार की तीखी आलोचना करना चाहिए तीखी आलोचना द्वारा सरकार को नियंत्रित रखना विपक्ष का संवैधानिक उत्तरदायित्व है।