*सरोकार –
डॉ. चन्दर सोनाने
संविधान में आमजन को शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल उपलब्ध कराना सरकारों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। किन्तु मध्यप्रदेश सरकार स्वास्थ्य विभाग के जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को निजी हाथों में देने की तैयारी के बाद अब ग्रामीण क्षेत्रों की नल से जल योजना भी निजी हाथों में देने की तैयारी कर रही है ? इसके लिए तर्क यह दिया जा रहा है कि पंचायतें अपनी पंचायतों में हर घर में नल से जल देने की योजना में असफल सिद्ध हो गई है। उनके पास न बजट है, न संसाधन। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग ने यह प्रस्ताव बनाया है कि हर घर में नल से जल देने की योजना को अब निजी हाथों मे सौंप दिया जाए।
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में 51 सिविल अस्पताल है। 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। इनमें से प्रथम चरण में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पीपीपी मोड पर 10 जिला अस्पतालों में निजी मेडिकल कॉलेज बनाने का फैसला कर लिया है। ये 10 जिला अस्पताल हैं- खरगोन, धार, बैतूल, टीकमगढ़, बालाघाट, कटनी, सीधी, भिंड, मुरैना आदि। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य संस्थान निजी हाथों में सौंपकर लोगों के स्वास्थ्य से समझौता कर रही है। मध्यप्रदेश के गरीबों के लिए बीमार होने पर एक मात्र सहारा सरकारी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ही हैं। इन सरकारी अस्पतालों का भी निजीकरण कर दिया जाएगा तो गरीब अपना इलाज कराने कहाँ जायेगा ?
मध्यप्रदेश सरकार अब स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की तैयारियों के बाद ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल व्यवस्था को भी निजी हाथों में सौंपकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ छुडा़ना चाहती है। खास बात यह है कि यह योजना केन्द्र सरकार की है। केन्द्र सरकार देशभर में इस महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन के अर्न्तगत एकल ग्राम में हर घर नल से जल योजना संचालित कर रही है। अभी नल जल योजना की व्यवस्था का काम पंचायतों के हाथों में हैं। इसे पीएचई विभाग निजी हाथों में देने की तैयारी कर रहा है। इसकी वजह वह यह बता रहा है कि ग्राम पंचायतें इस योजना को चलाने में असफल सिद्ध हो रही है। विभाग का प्रस्ताव यह है कि 100 गाँवों का एक क्लस्टर बनाकर एक निविदा आमंत्रित की जायेगी। 3 साल का ठेका दिया जायेगा। इसे 2 साल और बढ़ाया जा सकेगा।
पिछले दिनों उच्च स्तर की बैठक में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने यह प्रस्ताव रखा है कि नल से जल योजना का संचालन और संधारण का काम ठेके पर दे दिया जाए। बाहरी ऑपरेटर ही नल जल योजना का संचालन और मरम्मत आदि करें। विभाग ने इसके लिए यह भी तर्क दिया है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो यह योजना 4 साल में बंद होने की कगार पर पहुँच जायेगी। विभाग ने इस संबंध में एक प्रस्ताव सरकार को सौंपते हुए 1100 करोड़ रूपए की माँग भी की है। इसके साथ ही वर्तमान में चल रही 12,500 एकल ग्राम योजनाओं में से 6500 गाँवों की योजनाओं के पुनः मूल्यांकन की जरूरत भी बताई है। इसमें लागत 3,200 करोड़ रूपए बढ़ने की संभावना भी बताई गई है।
केन्द्र सरकार की इस महत्वपूर्ण जल जीवन मिशन के अन्तर्गत जिन गाँवों को हर घर जल घोषित किया गया है, उनके संचालन का जिम्मा अभी पंचायतों के पास है। पीएचई विभाग का यह मानना है कि बजट और संसाधनों की कमी के कारण अधिकांश गाँवों में रोज पानी वितरण भी नहीं हो पा रहा है। मध्यप्रदेश में 27,150 एकल ग्राम नल जल योजनाओं के लिए 17,911 करोड़ की राशि भी स्वीकृत है। इनमें से 12,500 योजना पूरी हो चुकी है। इस योजना में अभी तक मध्यप्रदेश में 52.50 लाख परिवारों को नल कनेक्शन दिए गए हैं। योजनाओं का लाभ लेने वाले परिवारों से हर माह 60 रूपए की दर से बिल वसूल किए जाने का भी प्रावधान है। इस प्रकार विभाग को हर साल में 378 करोड़ रूपए मिलना चाहिए। किन्तु पिछले 3 साल में हर साल औसत 4.68 करोड़ रूपए ही मिले है।
पीएचई विभाग ने कम राशि मिलने पर भी पंचायतों से अधिकार लेकर यह योजना ठेके पर देने का प्रस्ताव किया है। केन्द्र सरकार ने वर्ष 2019 में पूरे देश के लिए जल जीवन मिशन शुरू किया था। इसके लिए देश के हर ग्रामीण परिवार को 2024 तक नल कनेक्शन से पेयजल प्रदान करने की योजना बनाई गई थी। इसमें केन्द्र और राज्य सरकार का खर्च आधा-आधा रहता है। विभाग द्वारा बताया जा रहा है कि देश में अब तक 78.96 प्रतिशत घरों को नल कनेक्शन मिल चुका है। मध्यप्रदेश में इस योजना के अर्न्तगत 66.14 प्रतिशत घरों को कनेक्शन दे दिए गए हैं।
त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत पंचायतों को व्यापक अधिकार देने की जोर-शोर से बात तो की जाती है, किन्तु जब भी मौका मिलता है पंचायतों के अधिकारों में कटौती करने से अधिकारी बाज नहीं आते हैं। यदि केन्द्र की इस महत्वपूर्ण योजना को ठेके पर दे दिया जायेगा तो यह माना जायेगा कि मध्यप्रदेश सरकार ग्रामीणजन को पेयजल सुविधा देने की अपनी जिम्मेदारी से मुह मोड़ रही है। यह कदापि नहीं होना चाहिए। यदि पंचायतों को दिए गए अधिकारों का वे भंलीभाँत क्रियान्वयन नहीं कर पा रहे हैं तो उसके कारणों की खोज खबर ली जाने की आवश्यकता है। समस्या की जड़ में जाने की जरूरत है। और उस समस्या को दूर करने महती आवश्यकता है। ना कि पंचायतों से उसका अधिकार छीनकर पेयजल का कार्य ठेके पर दे दिया जाए। आश्चर्य की बात यह भी है कि जनप्रतिनिधि भी इस मामले में चुप हैं। उन्हें मुखर होने की आवश्यकता है। भले ही वह किसी भी पार्टी के हों। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से अपेक्षा है कि वे इस प्रस्तावित योजना पर रोक लगायंगे और पंचायतों को पर्याप्त बजट और संसाधन देकर उन्हें सक्षम बनायेंगे, ताकि वे दक्षतापूर्वक केन्द्र की इस महत्वपूर्ण योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर सकें।