काम न करने की मानसिकता

छोटा सा अनुभव साझा करना चाहता हूं। कुछ दिन पूर्व करीब 8.30 बजे रतलाम शहर में चार पुलिसकर्मी एक दुकान पर बातचीत कर रहे थे मैंने उनकी चर्चा सुनी। वे ड्यूटी पर जाने के लिए ड्रेस पहने हुए थे। वे दुःखी थे कि इतनी जल्दी ड्यूटी पर जाना पड़ रहा है। वे रतलाम के नये एसपी श्री अमित कुमार की कार्यप्रणाली से दुःखी थे। सुबह जल्दी उठकर ड्रेस पहनकर ड्यूटी पर जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था, उनमें से एक ने कहा – ये एसपी रहेंगे तब तक भागदौड़ करनी पड़ेगी। हम सभी जानते हैं कि श्री अमित जी के रतलाम एसपी बनने के बाद पुलिस प्रशासन में बहुत सक्रियता आ गई है। पिछले कुछ वर्षों से रतलाम शहर में न ट्राफिक कंट्रोल होता था, न पुलिस वाले दिखते थे और न रात की गस्त होती थी। एक सक्रिय कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के आने से बहुत परिवर्तन आ गया है, लेकिन नीचे स्तर के पुलिसकर्मियों को यह अच्छा नहीं लग रहा।

यह छोटी सी घटना भारत के शासकीय कर्मचारियों की मानसिकता प्रतिबिम्बित करती है। इसीलिए आम नागरिक को शासकीय कर्मचारी से बहुत शिकायत है। प्रायवेट नौकरी में बहुत कम वेतन पर दौड़-दौड़ कर काम करने वाले बहुत अच्छे वेतन पर शासकीय नौकरी मिल जाने पर काम करने में रूचि नहीं दिखाते। हम यह नहीं कहते कि सभी शासकीय सेवक ईमानदारी से काम नहीं करते, किन्तु उनकी संख्या बहुत कम होती है।