राहुल गांधी अमेरिका में हैं वहां उन्होंने भारत में प्रजातंत्र पर प्रश्न उठाएं। उन्होंने भारत की संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता पर भी प्रश्न उठाए। वे जब-जब विदेश जाते हैं भारत के प्रजातंत्र पर प्रश्न उठाते हैं। उनके अनुसार भारत में प्रजातंत्र नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि वे स्वयं सत्ता में नहीं है। उनके अनुसार भारत का चुनाव आयोग भी निष्पक्ष नहीं है, क्योंकि वे चुनाव नहीं जीते। वे भूल गए कि इस बार उनकी संसद सदस्यों की संख्या 40 से 99 हो गई। यह चुनाव भी भारत के चुनाव आयोग ने ही करवाया। भाजपा की संसद सदस्यों की संख्या कम हुई, यह भी उन्हें याद रखना चाहिए। उनके लिए भारत में प्रजातंत्र की सफलता और निष्पक्षता का एक बहुत सरल मापदण्ड है – यह उनका सत्ता में होना और न होना है। यदि वे सत्ता में हैं तो भारत में प्रजातंत्र सफल है और चुनाव आयोग भी निष्पक्ष है। उनके सलाहकार भी उनको यही शिक्षा देते हैं उनका दोष भी नहीं। उन्होंने सत्ता पर उनके परिवार का ही आधिपत्य देखा है। जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी, फिर उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहे। राहुल गांधी को उनकी दादी द्वारा लगाए गए आपातकाल को नहीं भुलना चाहिए। सत्ता पर कब्जा होने के कारण कांग्रेस पार्टी पर भी एक छत्र अधिकार रहा इसलिए राहुल गांधी समझते हैं कि उनका सत्ता पर पैतृक अधिकार है। कांग्रेस में तो कभी प्रजातंत्र रहा नहीं। इसी कारण राहुल गांधी यह मानते और समझते हैं कि प्रधानमंत्री पद उनकी बपौती है। वे स्वयं प्रधानमंत्री होते तो देश में प्रजातंत्र सफल और प्रजातांत्रिक संस्थाएं स्वतंत्र और निष्पक्ष होती अन्यथा नहीं।
राहुल गांधी अमेरिका में भारत विरोधी व्यक्तियों से प्रमुखता से मिल रहे हैं। अमेरिका की संसद सदस्य इल्हान उमर से उन्होंने विशेष मुलाकात की। वे भारत की बहुत विरोधी और पाकिस्तान की समर्थक हैं। उन्होंने मोदी की अमेरिकी यात्रा का विरोध किया था और संसद में मोदी के भाषण का बॉयकॉट किया था। राहुल जब भी विदेश में होते हैं वे विशेष रूप से भारत विरोधी व्यक्तियों से मिलते हैं। वे सत्ता में नहीं है इसलिए भारत में सबकुछ गलत हो रहा है, ऐसी उनकी मान्यता है। उन्होंने आरोप लगाया कि चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा कर रखा है वे भूल गए कि जवाहरलाल नेहरू के समय में 80 हजार वर्ग किमी भूमि पर चीन ने कब्जा कर लिया था। संसद में जब प्रश्न उठा तब नेहरू जी ने कहा था कि वह तो बेकार भूमि है और घास का एक तिनका भी वहां पैदा नहीं होता। यह संसद के रेकॉर्ड में हैं। निश्चित ही राहुल की विदेश में देश विरोधी गतिविधियां क्षम्य नहीं है। वे अन्य देशों में भी यही करते हैं।
भारत के नागरिक होने के नाते राहुल गांधी को चुनाव लड़ने और सत्ता के लिए संघर्ष करने का पूरा अधिकार है। उन्हें सरकार की आलोचना करने का भी पूरा अधिकार है परन्तु विदेशों में देश की आलोचना करना बहुत ही अनुचित है। यह उनकी सोची-समझी चाल है, किन्तु उन्हें यह समझना चाहिए कि किसी भी समझदार भारत के नागरिक को उनकी विदेश में देश विरोधी गतिविधियां उचित नहीं लगती। चूंकि राहुल यह सब जानबुझकर करते हैं इसलिए उन्हें समझाया नहीं जा सकता। समझदार को समझाना बहुत कठिन होता है।