शिक्षकों को उचित सेवा – शर्तों के साथ सम्मान प्रदान करें – प्रो. डी.के. शर्मा


हमारे देश में शिक्षकों को सम्मान देने के लिए शिक्षक दिवस प्रतिवर्ष 5 सितंबर को मनाया जाता है। विश्व भर में शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है, लेकिन भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर मनाया जाता है। 5 सितंबर को भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिवस है। वे विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक रहे थे। डॉ. राधाकृष्णन के विद्यार्थी और अन्य मित्रों ने मिलकर उनके जन्मदिवस को धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया। अतः प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस देश में आयोजित किया जाता है।

अध्यापक हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसलिए शिक्षक को भगवान से ऊपर का दर्जा दिया गया है। शिक्षक हमें ज्ञान देने के साथ ही जीवन जीने की कला सिखाते हैं। वे जीवन में होने वाली चुनौतियों से लड़ना सिखाते हैं और भविष्य के बेहतर निर्माण के लिए प्रेरणा देते हैं।

शिक्षक का मन में ध्यान आते ही एक आदर्श व्यक्ति की कल्पना हमारे मन में साकार हो जाती है। सच भी है, शिक्षक मनुष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर प्रेरित करते हैं। समाज शिक्षक को एक आदर्श व्यक्ति के रूप में निरूपित करता है। शिक्षक शब्द मन में आते ही एक संपूर्ण आदर्श व्यक्तित्व की कल्पना मन मस्तिष्क पर उभरती है। भारतीय संस्कृति प्राचीनतम संस्कृति है। हमारे देश में सांदीपनी मुनि, दोणाचार्य, विश्वामित्र, वशिष्ठ जैसे शिक्षक हुए हैं जिनकी शिक्षा से राम, कृष्ण, अर्जुन आदि के जीवन आलोकित हुए। प्राचीन युरोप में प्लेटो, अरस्तु के ज्ञान के प्रकाश से युरोप के सुरमाओं के जीवन प्रकाशित हुए। अनन्तकाल बीत गया, किन्तु शिक्षक का महत्व कम नहीं हुआ। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ शिक्षक का महत्व भी निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। शिक्षक ही ज्ञान के प्रकाश से जीवन को आलोकित करते हैं।

प्राचीनकाल में ऋषिमुनियों के आश्रम शिक्षा के केन्द्र हुआ करते थे। उस समय राजपुत्र ही शिक्षा के लिए वहां भेजे जाते थे। तब शिक्षा आमजन के लिए उपलब्ध नहीं थी। अंग्रेजों ने शिक्षा आमजन के लिए उपलब्ध करवाना प्रारंभ किया। उनके समय में विश्वविद्यालय तक शिक्षा की व्यवस्था हुई, यद्यपि बहुत कम स्थानों पर शिक्षण संस्थाएं प्रारंभ हुई। सीमित ही सही किन्तु आमजन की शिक्षा का प्रारंभ हुआ। शिक्षा के प्रसार के साथ ही शिक्षक वर्ग का भी विस्तार हुआ। अब बड़ी संख्या में शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। अतः शिक्षक दिवस शिक्षकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर विचार करने का उचित अवसर है।

आदिकाल से समाज में शक्तिशाली व्यक्ति का ही महत्व रहा है, फिर वह शक्ति चाहे आर्थिक हो अथवा अन्य। शिक्षक के प्रति उदासीनता का भाव समाज में सदैव से रहा है। शिक्षक आर्थिक दृष्टि से कभी सक्षम नहीं रहे। समाज में कभी भी शिक्षा का वास्तविक मूल्यांकन नहीं किया। यद्यपि शिक्षा के बिना व्यक्ति का वास्तविक विकास नहीं होता। शिक्षा का विस्तार तो हुआ, लेकिन किसी भी सरकार ने शिक्षक को आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाने का प्रयास नहीं किया। शिक्षाकर्मी और अतिथि विद्वान के रूप में बहुत कम मानदेय पर आज भी शिक्षकों को शासकीय विद्यालय – महाविद्यालय में काम दिया जा रहा है। कई उच्च शिक्षित युवा शिक्षाकर्मी के रूप में अपने जीवन का अमूल्य समय दे चुके हैं, उनका कोई भविष्य नहीं। महाविद्यालयों में भी अतिथि विद्वान के रूप में बहुत कम दैनिक वेतन पर नियुक्तियां दी जाती है। जबकि प्रशासनिक सेवा में नियमित रूप से भर्ती होती है, किन्तु शिक्षकों के पद पर नियमितीकरण बहुत कम होता है। उचित वेतन और स्थायी सेवा भी नहीं मिलती। महाविद्यालय में यूजीसी वेतनमान लागू है, किन्तु नियमित भर्ती कई वर्षों तक नहीं होती और अतिथि शिक्षक से काम चलाया जाता है, जबकि सभी प्रकार के शासकीय काम शिक्षिकों से ही करवाये जाते हैं।

निजी शिक्षण संस्थाओं में भी स्थिति बहुत दयनीय है। शिक्षकों को बहुत कम वेतन प्रदान किया जाता है। उनका वेतन दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों से भी कम होता है। समाज और सरकार शिक्षकों से राष्ट्र निर्माण की अपेक्षा करते हैं, किन्तु शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ नहीं किया जाता। शासकीय अधिकारियों का दृष्टिकोण भी शिक्षकों के प्रति सम्मान का नहीं होता। यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन निर्माण में सबसे अधिक महत्व शिक्षक का ही होता है। ज्ञान की गंगा शिक्षक के आशीर्वाद से प्रवाहित होती है। बिना इसके कोई व्यक्ति कुछ नहीं बन सकता। किन्तु शिक्षक के प्रति सबका दृष्टिकोण उपयोग करो और फेंक दो का होता है।

शिक्षा जीवन के विकास की नींव होती है। जीवन का निर्माण उचित शिक्षा से ही होता है। वर्तमान में तकनीकि शिक्षा का महत्व बढ़ने के साथ ही योग्य और उचित शिक्षकों की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है। योग्य-विद्वान को शिक्षा को अपना व्यवसाय बनाने के लिए प्रेरित करने हेतु शिक्षकों की स्थिति और सेवा शर्तों में सुधार होना चाहिए। यह समाज के हित में हैं।

वर्ष में केवल एक दिन शिक्षक का सम्मान करने से शिक्षकों का जीवनस्तर नहीं सुधरेगा। सरकार और समाज को शिक्षकों के प्रति वर्तमान दृष्टिकोण बदलना चाहिए। ऐसा करने से समाज का भी लाभ होगा।